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नागौरी लोका-गच्छ श्री मनोहर-सम्प्रदाय
आचार्य भैरव स्वामी आचार्य नेमचन्द्र आचार्य आसकरण आचार्य वर्धमान
आचार्य सदारंगस्वामी क्रियोद्धारक प्राचार्य श्री मनोहरदासजी
आप मरुधरा के विख्यात नगर नागौर के निवासी थे। सुप्रसिद्ध ओसवाल जाति से सम्बन्धित सुराणा वश के एक धनी एव समृद्ध परिवार मे आपका जन्म हुआ। गृहस्थ जीवन बहुत सुखी और शानदार रहा। लक्ष्मी के साथ आप को सरस्वती के वरदान स्वरूप विलक्षण प्रतिभा मिली थी। यौवन के मध्य प्रवाह मे अन्दर से वैराग्य की लहर उठी और वह लगातार बढती रही, ऊपर उठती रही । एक दिन दृढ निश्चय के साथ नागौरी लोकागच्छ के तत्कालीन सुप्रसिद्ध यतिराज श्री सदारग जी' के पास दीक्षित हो गए। प्राचीन जैनागमो का तलस्पर्शी गम्भीर अध्ययन किया। कुछ ही वर्षों मे नव दीक्षित यति के पाण्डित्य की गच्छ मे सब ओर यशोदुन्दुभि बजने लगी।
श्री मनोहर जी इधर अपने गच्छ मे यशस्वी हो रहे थे, उधर उनके अन्तर्मन मे एक तीव्र विचारमन्थन चल रहा था । भगवान् महावीर का मूल धर्म क्या है और आज हम क्या है ? साधुचर्या के सम्बन्ध मे आगम कुछ कहता है ? और आज हमारा जीवन कुछ और ही दिखाई देता है ? लोकाशाह की धर्म क्रान्ति के साथ हमारा आज, केवल नाम मात्र का सम्बन्ध ही रह गया है। आचरण के क्षेत्र मे तो हम उनसे काफी दूर भटक गए है। शिथिलाचार के विरोध मे चिन्तन के साथ धीरे-धीरे आवाज भी साफ होने लगी, इधर उधर क्रियोद्धार की चर्चा बल पकडने लगी। मनोहरदास जी के चिन्तन की विचार-ज्वाला खुलकर प्रकाश फैकने लगी कि यति-सघ चुंधिया गया। अनुकूल और प्रतिकूल दोनो ही प्रकार के विचारो के शिविर बनने लगे।
नागौरी लोकागच्छ मे, इधर यह तरुण विचार-क्रान्ति के पथ पर बढ रहा था, क्रियोद्धार के सकल्पो का ताना-बाना बुन रहा था, और उधर गुजरात, मालवा तथा राजस्थान मे पूज्य श्री जीवराज जी, पूज्य श्री लवजी ऋषि जी, पूज्य श्री धर्म सिह जी, पूज्य श्री धर्म दास जी आदि महापुरुषो ने शिथिलाचार के विरोध मे क्रियोद्धार की प्रचण्ड क्रान्ति करदी थी। तूफानी लहरो की तरह उनके विचार तरग जनसागर मे दूर-दूर तक गर्जते फैलते जा रहे थे। क्रियोद्धार का यह महाघोष नागौरप्रदेश मे भी टकराया। मनोहर जी को अपने उत्क्रान्त विचारो के लिए बलवती प्रेरणा मिली। क्रियोद्धार के सकल्पो ने मूर्त रूप धारण किया। जैन इतिहास मे विक्रम की १६-१७ वी शती वडी ही महत्त्वपूर्ण है। यह
१ गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी म० ने अपने स्थानाग सूत्र के लेखन को प्रशस्ति मे श्री मनोहरदास जी को
श्री वर्धमान सूरी का शिष्य लिखा है।
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