SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत-भाषा का एक मात्र आलंकारिक ग्रन्थ अलंकार-दर्पण श्री अगरचन्द जी नाहटा + + + + + + + + + + + + + + + + - + - - -+ + प्राकृत-भाषा भारत की प्राचीनतम भापा है। यद्यपि उपलब्ध माहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्य "वेद" माने जाते है और उनकी भाषा "संस्कृत" है । पर जब हम मस्कृत और प्राकृत इन दोनो शब्दो पर विचार करते हैं, तो यह मानने को बाध्य होना पड़ता है कि प्राकृत अर्थात् स्वाभाविक जन-साधारण की भापा और संस्कृत अर्थात् सस्कार की हुई शिष्टजनो की भाषा। सस्कार तो किमी विद्यमान वस्तु का ही किया जाता है । इसलिए मबसे प्राचीन भाषा का नाम प्राकृत ही हो सकता है। यद्यपि इस भाषा मे रचा या लिखा हुआ साहित्य उतना पुराना नहीं प्राप्त होता, पर उमकी मौलिक परम्परा अवश्य ही प्राचीन रही है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भापा पर बाहर से आने वाले, दूसरे प्रान्तो के तथा आस-पाम के लोगो की वोली का प्रभाव पड़ता रहता है। इमलिए उसमे परिवर्तन होता रहता है । प्राकृत में भी इसी तरह परिवर्तन होता रहा है और प्रान्तीय भेद भी उसके अनेक रहे है, यह प्राकृत के प्राप्त शिला-लेखो, संस्कृत नाटको मे प्रयुक्त प्राकृत के उद्धरणो और प्राचीन ग्रन्थो से भली भाति स्पष्ट है। बौद्ध ग्रन्थो की पालि-भापा, अशोक के शिला-लेखो की भाषा और जैन ग्रन्थो की भापा "प्राकृत" होने पर भी उनमे काफी अन्तर है। इसी तरह जैन-प्रन्थो में भी प्राकृत भाषा के कई रूप मिलते है-अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री और शौर-सैनी ये प्राकृत भाषा के तीन भेद तो बहुत प्रसिद्ध है। प्राकृत साहित्य भी बहुत विशाल है। ढाई हजार वर्षों से उसमे निरन्तर साहित्य-रचना होती रही है । और प्राय जीवनोपयोगी सभी विषयो के प्राकृत-ग्रन्थ प्राप्त है। प्राकृत-साहित्य के निर्माण में ३६४
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy