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________________ रामायण सम्बन्धी एक अज्ञात जैन-रचना सीता-चरित श्री जिनरत्नकोश के पृ० ४४२ मे सीता-चरित नामक कई रचनाओ का विवरण दिया है, जिनमे से कुछ संस्कृत में और कुछ प्राकृत मे । इस लेख मे जिस सीता-चरित का विवरण दिया जा रहा है, उसका प्राचीन उल्लेख बृहद्दिपनिका नामक सूची में प्राप्त होने का कहा गया है, और उसका ग्रन्थ परि माण ३१०० व ३४०० श्लोको का बतलाया है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति हसविजय जी भडार वडौदा मे भी है । खोज करने पर अन्य भडारो मे भी इस ग्रन्थ की प्रतिया अवश्य मिलेंगी। पउमचरिय के साथ इसका तुलनात्मक अध्ययन होना आवश्यक है । सीता चरित सबन्धी अन्य जिन रचनाओ का उल्लेख जिन-रत्नकोश में है, उनमे से एक अज्ञात कवि रचित सीता-चरित की कई प्रतियो का उल्लेख किया गया है । उनमे से एक तो प्रस्तुत सीता चरित की ही है। अन्य प्रतियो को मिलाने से मालूम होगा, कि वे भी इसी ग्रन्थ को है, या ऐसी ही कोई अन्य रचना भी है। पाटण भडार मे सीताचरित नामक एक सस्कृत काव्य भी है, इन सब ग्रन्थो का आधार प्रस्तुत सीता-चरित्र है या पद्मचरित, यह भी अन्वेपणीय है। जैन कवियो व विद्वानो ने शील धर्म या सती के आदर्श रूप मे सीता को विशेष महत्व दिया है, पर प्रस्तुत प्राकृत सीताचरित मे मुनि को मिथ्याकलक देने के दुष्परिणाम को व्यक्त करने के लिए दृष्टान्तरूप में सीता की कथा कही है, जो विशेपरूप से उल्लेखनीय है । वास्तव मे किसी व्यक्ति को मिथ्या कलक देना, उसकी चुगली करना महापाप है। इसीलिए अठारह पापस्थानको में अभ्याख्यान, पैशुन्य, एव परपरिवाद का अलग अलग पाप स्थानक बतला कर उनसे बचने का निर्देश किया गया है। SARI HAR 10000 110860 - - ० SAMMIN . वा M मितता PIMPRILALIT. ३६३
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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