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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-अन्य
अन्भक्खाण विवाग सूयमिणं सवेग संसाहग । सन्वेसि पि जणाण विम्हय-कर सोलप्पसंसा-परं॥ किचौराहव लक्खरणेहि सहिय लंकाहिवेण तहा। सीया वेवि महासईए चरिय सखेवमो साहियं । २५०६ ।।
नाऊण परिभाविऊण हियए सम्म इम सव्वहा । अभिक्खाणमसख दुक्ख जणण वज्जेह भव्या जणा। सोलं सव्व गुणाण भूसण-करं निन्याण संपायग । खंडिज्जत मलकलक विकलं रखेह निच्च तहा ।। २५०७॥ एप सीय-चरिय वन्नरिय से गियस्स नरवणो। जह गोपमेण तह मह सूरीहिं निवेइय किंचि ॥ २५०८ ॥
इति श्री शील व्रताधिकारे महामती श्री मोताचग्यि धर्मकथा पवित्र मपूर्णमिति भद्रं भयान् । शुभ भवतु ॥ ५ ॥ प्रथानथ ३२०२ । कल्याणमस्तु ।
सवत् १६७४ वर्षे फाल्गुन मामे कृष्णपक्षे ७ दिने मपूर्ण ॥ पण्डित जीवविजय गणि नत् गिप्य गोपालेन लिपिकृत।
प्रति-परिचय
पत्र २ सुवाच्य मध्य व दोनो तरफ लाल-पीले नीले रंग के फल बने हुए है। प्रतिपृष्ठ मे १३ पक्तिया है । प्रतिपक्ति ५० अक्षर है । पत्री मे हामिए पर व पक्तियो के ऊपर यथास्थान पर्याय, अयं व पाठान्तर भी नोट किए हुए है, प्रति शुद्ध मालूम देती है। अतिम पर एक तरफ पूरा व दूसरी ओर केवल २ पक्तिया है, बाकी रिक्त, फूल आदि चित्रित है। यह प्रति स्वर्गीय श्री पूरणचद्र जी नाहर सगृहीत गुलावकुमारी लाइनेरी की प्रति ब० न० २६ प्रति २९४ है । किनारे में कुछ दीमकादि जीवो द्वारा भक्षित है, पर प्रति का पाठ सुरक्षित है । उक्त लाइब्रेरी मे १० वी गती को लिखित एक अन्य प्रति भी है । प्राकृत अन्य परिवार आदि के चित्र । प्रस्तुत ग्रन्य सुसम्पादित रूप में शीघ्र ही प्रकाशन योग्य है। इसके आधार से जो समयसुन्दरजी ने सीताराम चौपाई की रचना की है, उसे हमने मम्पादित करके मुद्रित करवा दी है, और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है । इसमे हमने राम और सीता के चरित्र का सक्षिप्त सार भी दे दिया है, जिससे सुगमतापूर्वक मीता चरित्र की कथा को पाठक पढकर लाभ उठा सकते हैं।
' नाहर जी के संग्रहस्थ दूसरी प्रति में ग्रंथाग्रंथ ३३४५ है।
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