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________________ रामायण सम्बन्धी एक अज्ञात जैन-रचना सीता-चरित वियरइ अभक्खाण इयरस्सवि जो जणस्स दुबुद्धि । से गरहिज्जई लोए लहेइ दुक्साइं तिक्साइ ॥६॥ जो पुण जईण समियाण सुद्ध भावाण बंभयारीण । अब्भक्खाणं देई मच्छर-दोसेण दुह मई ॥ ७ ॥ निम्वत्तिऊण तिब्वं पावं पावेइ सो वुहमणतं । सोयाइव्व पुब्व-भवे मुणि अभक्खाण दाणाओ ॥८॥ अह भणइ सेणिय निवो भयवं साहेह पग्गहं काउं। कह अन्भक्खाणामो दुक्स सीयाए अणुभूय ॥६॥ तो भणइ इंदभूई नवघण-गभीर-महुर-घोसेणं । संखेव वित्थरेणं साहेमि इमं निसामेह ॥१०॥ कथा-प्रारंभ जासि इह भरहवासे, मिणाल कुंडमि पवर-नयरंमि । सिरिभूई नामेण पुरोहिओ परहिएक्करई ॥ ११ ॥ तस्स य सरस्सई ए सरिछ बुद्धी सरम्सई भज्जा। तीएय कुच्छि भूया वेगवई नाम किल धूया ॥१२॥ तव लच्छि भूलियंगो, कयाइ तत्थागो विगय संगो। खंतो दंतो समियो सुदसणो मणिवरो एगो ॥१३॥ नयमज्जाणे पडिमाइ संठिो सो विसि गुणकलिओ। चिट्ठतो विनामो मायर-लोयाण मुणिवसहो ॥१४॥ भत्ति-बहुमाण पुव्व सोतं पूएई गंधमाईहि । पक्षियहं चिर बबइ नमसए सेवए विहिणा ॥१५॥ ततो चुमो नरभवमि समागओ सो तित्थे सरस्स घसुबत्त जिणस्स पासे । पावित्तु चार गणहारि पर जिणुतं पाविस्सई सयल कम्म खएण मोक्खं । २५०५ ।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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