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________________ गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-प्रन्य नववी उल्लेख नहीं है, पर यह रचना आठवी शताब्दी के आग-पाम को मालूम देती है। उसकी एक हस्त लिखित प्रति चौदह वी शती में लिखित हमारे अवलोकन मे आयी है, पर अभी जिग प्रति के आधार में यहाँ परिचय कराया जा रहा है-म० १६६४ में लिखी हुई कलकत्ता के स्वर्गीय पूर्णचन्द्र जी नाहर के सग्रह मे, यह कृति है । २५.०८ गायानो वा ३२०२ ग्रन्याग्रथ (लोक) परिमित यह रचना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । सतरहवी शती के महाकवि महोपाध्याय ममयमुन्दर जी ने मीनाराम चौ० नामक महत्त्वपूर्ण राजस्थानी महाकाव्य की रचना सम्भवत उमी मीना-चरित के आधार में की है। ये लिखते है जिन-शामन शिवशासनइ मोताराम चरित मुगीनइ रे। भिन्न भिन्न शामन भणी का का वात भिन्न फही जहरे॥ निन शासनिपगि जूनुजा आचारिज ना अभिप्रायो रे । सोता कही रावण-सुता ते पदमचरित फहियायो रे॥ पणि वीतराग देवद कहो त माचो फरि सहिल्यो रे। "सीताचरित" थकी मे कहो माहरो छेटोमत पहिल्यो रे ॥ सीताचरित की रचना जैसे कि प्रारभ व अत में प्रथकार ने लिखा है, कि मुनि को मिय्या अभ्याल्यान देने के कारण सीता को कष्ट उठाना पड़ा। इमी के उदाहरण रप में मीता की फया विस्तार से कही गयी है, और अन्त में ऐसे मिय्याकलक ने मीता-चरित में बचने की प्रेरणा की गई है । अन्य का आदि अन्त इस प्रकार है प्रादि कमल नह कति जलेण वसालिय देह सुणिम्मला इति । नर सुरावि सया पणया जैसि ते जिणवरे नमह ॥ १ ॥ वर-वयण-धारिधारा नियरं जस्सावियंति अवियोहा । बप्पीहयच्च भन्दा नमामि तं वीर-जिण-मेह ॥ २॥ धम्माधम्मस्स फलं जहसिटुं गोयमेण मृणिवयणा । सेणिय रायस पुरो सुणेह तं किंपि साहेमि ॥ ३ ॥ नो चेव भासियव्य हियच्छणा दुक्स-कारण वयणं । अलिय अभक्खाण पेसुन्न मम्म बोहाई ॥४॥ संतो बिहुवत्तन्वो परस्त दोसो न होइ विबुहाण । कि पुण अविज्जमाणो पयडो छनो य लोयस्स ॥ ५ ॥ ३६०
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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