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क्या देव-जैनीज (Drogenes) जैन थे ?
१. सिनिक विचार के अनुसार नैतिक भद्र ही मूल्यवान है। अन्य मारी वस्तुएँ मूल्य से शून्य हैं, और इसलिए एक ही स्तर पर है । स्टोइक विचारको ने भद्र और अभद्र के सम्बन्ध में मौलिक नियम को अपनाए रखा, परन्तु अन्य पदार्यों में भी भेद किया। भले पुरुप के लिए स्वास्य, बीमागे से अच्छा है।
२ सिनिक विचार के अनुसार वृत्ति एक ही है । प्रत्येक मनुष्य नेक है या बुरा है। नेकी और बुराई दोनो एक साथ नही हो सकती।" इन भेदो की विस्तृत व्याग्या न देकर हम यहां सक्षेप में, यह कह सकते है, कि "सिनिक" अतिशयवादी दल के थे और स्टोइक सतुलित थे। पर ये दोनों मिलकर निचले स्तर पर रहने वाले और क्षणिक तृप्ति ढूढने वाले सुसवादियो अर्थात् सिरीनायको के कट्टर विरोधी थे। और दोनो ज्ञान-ध्यान के ऊंचे स्तर की प्राप्ति में मलग्न रहते थे।
पहले हम आदि के दो देव-जिनी-ज का और फिर अन्तिम देव-जिनी-ज का परिचय देकर, अन्त में सबसे प्रसिद्ध देव-जिनी-ज का वर्णन करेंगे।
१ देव-जिनी-ज लीशि (Diogenes Lacitus) का समय ईसा के पूर्व की पहली शताब्दी में माना जाता है । यह ग्रन्थकार और दर्शन के इतिहासकार थे। इन्होने फैशागोरस (Pythagoror) के सिद्धान्तो, जैसे सर्वात्मवाद एव पुनर्जन्म आदि का जीर्णोद्धार बारके, नैतिक और धार्मिक क्षेत्र में, स्टोइक विचार-धारा का पोषण किया।
२. बेबीलन (Babylon) या बावुल के देव-जैनी-ज । दर्शन के प्रसिद्ध इतिहासकार, विन्डल्बन्ड (Wndelband) का कथन है, कि जब स्टोइक सम्प्रदाय के विशिष्ट व्यक्तित्व पर विचार किया जाए, तब हम पाते है, कि उसके अधिकाण अनुयायी पश्चिमी एशिया की मिश्रित जातियो के थे। यह विचारक भी प्राचीन ईराक के थे । इन्हे मुनि (Sage or savant) कहा गया है। इनका समय भी ईसा के पूर्व की प्रथम शताब्दी है । इनके मनन के विषय इतिहाम, माहित्य और दर्शन थे। ये सुम्ववाद के विरोधी थे, और इनके विचार इस समस्या पर केन्द्रित थे, कि आदर्श व्यक्ति या मुनि (Sage) के क्या लक्षण होने चाहिए । इन विचारको ने "व्यक्ति कैसे पूर्ण वने"-इस समस्या पर अधिक बल दिया ओर "समाज कैसे सुखी हो ?"-इस प्रश्न पर कम ध्यान दिया-ऐमा इनकी आलोचना मे कहा जाता है।
' डा० दीवान चद-पश्चिमी वर्शन (प्रकाशन व्यूरो) लखनऊ पृ० ६२ २ डा० विलियम विन्डिलबंन्ड का "दर्शन का इतिहास", टफट्स (Tuits) द्वारा अंग्रेजी अनुवाद मैकमिलन द्वितीय संस्करण पृ० १६२
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