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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
इन उदाहरणो से विदित हो जाएगा, कि अनेक अन्वेपणो मे या तो ध्वनि के सादृश्य या सिद्धान्तो एव व्यवहारो के सादृश्य का सहारा लेना पर्याप्त माना जाता है। इस लेख में हम इन दोनो मे से किसी एक का सहारा लेने के स्थान मे, दोनो सादृश्यो के सम्मिलित आधागे पर, इस बात पर बल देगे, कि सूक्ष्म अध्ययन द्वारा इस विषय के रहस्य का पूर्णत उद्घाटन करने का यत्न किया जाए, कि "क्या देव-जिनीज अथवा देव-जैनीज़ (Diogenes) जैन थे ?"
मै इनके नाम मे ध्वनि के सादृश्य के विषय मे अधिक न कहकर, केवल इतना ही उल्लेख करूंगा कि किसी इतिहास मे चन्द्रगुप्त (मौर्य वश वाले) के नाम का यूनानी रूपान्तर सैन्ड्रोकोटस (Sandro cotus) बतलाया गया है । किसी विद्वान ने यह भी बतलाया है, कि "भारगव" शब्द यूनान के भाग "फिजिया" (Phaygia) से निकला है। विद्वानो का कथन है, कि अग्रेजी का (या स्काच भाषा का) नाम फार्कर (Farquhan) संस्कृत के शब्द "वीर-वर" ही का रूपान्तर है। इसी प्रकार सम्भव है, कि "देव-जिनीज" नाम के एक भाग में "जिन या "जैन" की ध्वनि मिलती है।'
अब हम सिद्धान्तो और व्यवहारो के सादृश्य को ढूंढेगे। इतिहास के विद्यार्थी जानते है, कि सिकन्दर के भारत पर आक्रमण करने के पूर्व, कुछ समय तक भारत के पश्चिमोत्तर भाग पर ईरानी शासको (क्षत्रपो) का अधिकार था । सिकन्दर के आक्रमण तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के यूनानियो को भारत की सीमा से खदेडकर यूनानी सेनापति सैल्यूकस (Seleucus) की पुत्री से विवाह कर लेने और अपनी राजधानी पाटलीपुत्र मे यूनानी राजदूत मैगस्थिनीज (Megasthenes) को रख लेने के पश्चात्, भारत और यूनान का सीधा सपर्क स्थापित हो गया था । सिकन्दर की विजय के पश्चात्, ईरान, मध्य एशिया, ईराक तथा पश्चिमी एशिया मे यूनानी राज्य स्थापित हो गए थे। इन देशो और यूनानियो के सम्मिश्रण से नयी जातियां उत्पन्न हो गई थी। इस प्रकार इस काल मे, भारत का पश्चिमी एशिया और यूनान से व्यापारिक और सास्कृतिक सम्बन्ध होने लगा था। सभव है, कि दोनो देशो के दार्शनिक विचारको काउदाहरणार्थ भारत के चार्वाको का यूनान के सिरीनायक (Cerenancs) से सपर्क हुआ हो, और यह भी सभव है, कि भारत के जैन विचारको का प्रभाव पश्चिमी एशिया तथा यूनान के विचारको पर पडा हो । हम पाते है कि देव-जिनीज नामधारी यूनान के चारो दार्शनिको के विचार और आचार जैनो के विचारो और आचारो से बहुत कुछ मिलते जुलते है।
चारो देव-जैनी-ज या तो "सिनिक" (Cynic) सप्रदाय के हैं, या स्टोइक (Stonc) सप्रदाय के है। इन दोनो सप्रदायो का भेद प्राय उसी प्रकार का है, जैसे जैनो मे दिगम्बर तथा श्वेताम्बर सप्रदायो का भेद । डाक्टर दीवान चद के अनुसार सिनिक और स्टोइक मतो मे प्रमुख भेद ये है -
१ डायो (Dro) प्रत्यय के तीन प्रयोगो मे से एक, केवल उपसर्ग (Prefix) के रूप मे, शब्दों के
आरम्भ मे होता है।