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________________ लोकाशाह और उनकी विचारधारा २६ वे बोल में उत्तराध्ययन-सूत्र की टीका मे से उल्लेख लिया गया है, जो इस प्रकार से है, कि प्रसंग आने पर चक्रवर्ती के सम्पूर्ण सैन्य को नष्ट करने का बल साधु रखते हैं। यह वर्णन लब्धिघर मुनि का है, सामान्य मुनि एव सामान्य साधु का नहीं । २७ से ३३ ३ बोल तक मे व्यवहार-वृत्ति, प्रज्ञापना-वृत्ति और आवश्यक नियुक्ति के आधार पर अपवादो की चर्चा की गई है । एक प्रश्न यह भी किया गया है कि इस प्रकार के अपवाद में सहमति देने वाली आवश्यक-नियुक्ति चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु की रचना कैसे हो सकती है ? अन्त में कहा गया है कि बुद्धिमान एव विवेकशील पुरुष इन सबके बारे में विचार करें, जिससे लोक और परलोक में सुख प्राप्त करे। इस हस्त-प्रति के अन्त मे जो कुछ लिखा गया है, उस पर से यह मालूम पडता है, कि यह प्रति निश्चय ही लोकाशाह के मत की है, लोकाशाह के विचार की है । क्योकि इस प्रति की नकल करने वाले ने लिखा है कि "ए सर्व लुकामती नी युक्ति छई। प्रतिमा मानइ तेहने तो पञ्चागी प्रमाणइ सर्व युक्ति प्रमाणछह । जाणवानई एह लिखू छई।" इस पर से यह स्पष्ट हो जाता है, कि नकल करने वाला लेखक कह रहा है, कि वह अपने पाठक को सचेत कर रहा है कि इस प्रति मे जो कुछ भी लिखा गया है, वह लोकाशाह का कथन है, लोकाशाह की युक्ति है। परन्तु जो लोग प्रतिमा-पूजा में विश्वास रखते है, उनके लिए तो पञ्चागी की युक्ति ही, पञ्चागी का कथन ही प्रमाणभूत है । क्योकि यह केवल लोकाशाह के मत को समझने के लिए ही लिखा है, उसे स्वीकार करने के लिए अथवा मानने के लिए नहीं लिखा है। अन्त में मैं एक बात स्पष्ट करदूं । लोकाशाह के विषय में, जितना मेरे लिए सम्भवित था, उतनी खोज मैंने की है। प्राचीन हस्त-प्रतियो का जो कुछ मैंने अध्ययन किया, उसी के आधार पर यह प्रस्तुत लेख लिखा गया है। इसका अर्थ यह कदापि नही है कि मेरी खोज पूर्णत सत्य है, अब आगे किसी प्रकार की खोज नहीं हो सकती । लोकाशाह, उनकी परम्परा और उसकी विचारधारा के विषय में वस्तुत बहुत बड़े और गम्भीर अनुसन्धान की आवश्यकता है । स्थानकवासी समाज के विद्वान मुनिराजो और विचारक-श्रावको का यह परम कर्तव्य है, कि वे इस विषय में और भी अधिक गहरा अनुसन्धान करके सत्य पर प्रकाश डालने का प्रयत्ल करें। । अनुवादक : रमेशचन्द्र मालवणिया ३५३
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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