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________________ नागौरी लोका-गच्छ श्री मनोहर-सम्प्रदाय आचार्य जयानन्द आचार्य उचित स्वामी आचार्य प्रौढ़ स्वामी आचार्य विमल चन्द्र आचार्य नागदत्त' आचार्य धर्मघोष आचार्य रासह आचार्य देवेन्द्र आचार्य रत्नप्रभ आचार्य अमरप्रभ आचार्य ज्ञान चन्द्र आचार्य शेखर आचार्य सागर चन्द्र आचार्य मलयचन्द्र आचार्य विजय चन्द्र आचार्य यशवन्त आचार्य कल्याण आचार्य शिवचन्द्र आचार्य हीरागर श्री हीरागरजी महाराज जाति के सुराना ओसवाल थे, नागौर निवासी । आपने नागोर की यति परम्परा के तत्कालीन पट्टधर आचार्य शिवचन्द्र जी के पास दीक्षा ग्रहण की और आगमो का गम्भी अध्ययन किया । आगम-अध्ययन के पश्चात् आपके अन्तर्मन मे विचार द्वन्द्व होने लगा कि आगमो जैन साधु का आचार क्या है और हम यति आज कर रहे है कुछ और ही । कहाँ परिग्रह से मुक्त वः निर्मल साधु जीवन और कहाँ परिग्रह-पाश से बद्ध आज का यति वर्ग ? दोनो मे कही भी कुछ भी त मेल नही है । इधर यह अन्दर ही अन्दर विचार-ज्वाला जल रही थी कि सौभाग्य से उन्ही दिनो गुजरात मे धर्मवीर लोकाशाह ने धर्म क्रान्ति का शख फूंका। जैन परम्परा मे धर्मवीर लोकाशाह की धर्म-क्रान्ति का बहुत बड़ा गौरव है । आपका जन अरहर वाडा (सिरोही राज्य) मे हुआ । आप जाति के ओसवाल कहे जाते है । पिता का नाम हेमज भाई और माता का नाम गगा बहन था । तपागच्छीय यति श्री कान्ति विजय जी (विक्रम स० १६३६ ' आप विक्रम संवत् १२८५ के वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन युग प्रधान पद से सुशोभित हुए । अप विद्वान् शिष्य धर्मघोष सूरी के साथ अपने तत्कालीन मरुधरा के सूर राजा को जैनधर्म का प्रतिबो दिया, जिससे ओसवाल जाति मे सुराणा गोत्र प्रचलित हुआ। २६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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