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महावीर और बुद्ध पूर्व-भवो मे
५ स्थविर का विनय ६ बहुश्रुत का विनय ७ तपस्वी का विनय ८ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ६. सम्यग् दर्शन १०. विनय ११ षड् आवश्यक समाचरण १२ मयम का निरतिचारपालन
१४ तपश्चर्या १५ पात्र-दान १६ वैयावृत्य १७ समाधिदान (गुरु आदि को) १८ अपूर्व ज्ञानाभ्यास १६ श्रुत-भक्ति २० प्रवचन प्रभावना'
वश पारमिताएं (पाली रूप-पारमी)
२ शील ३ नैष्कर्म्य ४ प्रज्ञा ५. वीर्य ६ शान्ति ७. सत्य ८ अधिष्ठान (दृढ निश्चय)
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१ इमे हियाण विसाहिय-कारणेहि आसेविय बहुलीकएहि तिथियर-णाम-गोय-कम्म निन्वतेसु, त जहा अरिहंत सिद्ध पधयण गुरु मेरे बहुस्सए तवस्सीसु वच्छलयाय तेसि अभिक्खणाणो वो गैयः॥१॥ दसण विणय आवस्सयए सीलब्वएय गिरवइयारे खणलव तवच्चियाए वेयावच्चे सभाहीयं ॥२॥ अपुग्वणाणा गहणो सुय-भत्ती पवयणोप्पभावणाया एएहि कारणेहि तित्ययरत्त लहइ जीवो ॥३॥
-माताधर्मकथाङ्ग सूत्र-अ०८
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