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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
अच्छा मालूम होता है, कि मैं भी दीपकर की तरह परम सबोधि प्राप्त कर अनेक जीवो को धर्म की नौका पर चढा कर ससार-सागर के पार ले जाऊँ, और पश्चात् स्वय परिनिर्वाण में प्रवेश करूं । यह विचारकर उन्होने "बुद्ध भाव" के लिए उत्कट अभिलापा (पालि अभिनीहार) प्रकट की।
दीपकर के समीप सुमेघ ने बुद्धत्व की प्रार्थना की और ऐमा दृढ विचार किया, कि बुद्धो के लिए मैं अपना जीवन भी परित्याग करने को उद्यत हूँ । इस प्रकार सुमेध अधिकार सम्पन्न हुए।
दीपकर उनके पास आकर बोले-"इस जटिल तापस को देखो। यह एक दिन बुद्ध होगा।" यह बुद्ध का "व्याकरण" हुआ । "यह एक दिन वुद्ध होगा"-इस वचन को सुनकर देवता और मनुष्य प्रसन्न हुए और बोले-"यह "बुद्ध-बीज" है, यह "बुद्धाकुर" है।" वहाँ पर जो "जिन-पुत्र" (बुद्ध-पुत्र) थे। उन्होने सुमेघ की प्रदक्षिणा की । लोगो ने कहा-"आप निश्चय हो बुद्ध होगे । दृढ पराक्रम करो, आगे बढो, पीछे न हटो ।" सुमेध ने सोचा कि बुद्ध का वचन अमोघ होगा।
बुद्धत्व की आकाक्षा की सफलता के लिए सुमेघ बुद्ध-कारक धर्मों का अन्वेषण करने लगे, और महान् उत्साह प्रदर्शित किया । अन्वेषण करने से दा पारमिताएं प्रकट हुई, जिनका आसेवन पूर्वकाल मे बोधिसत्वो ने किया था। इन्ही के ग्रहण से बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। सुमेध ने बुद्ध गुणो को ग्रहणकर दीपकर को नमस्कार किया। सुमेघ की चर्या अर्थात् साधना प्रारम्भ हुई
और ५५० विविध जन्मो के पश्चात् वह तुपित-लोक मे उत्पन्न हुए, और वहां बोधि प्राप्ति के सहन वर्ष पूर्व बुद्ध हलाहल शब्द इस अभिप्राय से हुआ, कि सुमेघ की सफलता निश्चित है । तुपित-लोक से च्युत होकर माया देवी के गर्भ मे उनकी अवक्रान्ति हुई और मनुष्य भव धारण कर उन्होने सम्यक् सम्बोधि प्राप्त की।
उक्त प्रकरणो मे भव-भ्रमण का प्रकार, आयु की दीर्घता आदि अनेको विपय अन्वेपणीय वन जाते है । तीर्थकरत्व-प्राप्ति के लिए बीस निमित्त और बुद्धत्व-प्राप्ति के लिए दश पारमिताएं अपेक्षित मानी गई हैं । उन निमित्तो और पारमिताओ के हार्द मे बहुत कुछ समानता है।
बोस निमित्तक
१. अरिहन्त की आराधना २. सिद्ध की आराधना ३. प्रवचन को आराधना ४ गुरु का विनय
बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० १८१-८२
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