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महावीर और बुद्ध पूर्व-भवों में
अणुव्रत परामर्शक मुनि श्री नगराजजी
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जैन और बौद्ध परम्परा में पूर्व-भव चर्चा भी लगभग समान पद्धति मे ही मिलती है। महावीर और बुद्ध की भव-चर्चा मे तो एक अनोखी समानता भी है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभ ने अनेक भवो पूर्व मरीचि तापस को लक्ष्य करके कहा - "यह अन्तिम तीर्थकर महावीर होगा।" इसी प्रकार अनेक कल्पो पूर्व दीपकर बुद्ध ने सुमेध तापस के विषय मे कहा - "यह एक दिन बुद्ध होगा।" महावीर की घटना उनके पच्चीस भव पूर्व की है । बुद्ध की घटना पाच सौ इकावन भव पूर्व की है। दोनो घटनाओ का संयुक्त अव्ययन सरस और ज्ञानवर्धक होने के साथ साथ दोनो परम्पराओ को समान धारणाओ का परिचायक भी होगा ।
मरीचि तापस
उस समय भरत चक्रवर्ती का पुत्र मरीचि प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभ के पास दीक्षित हुआ । ग्रीप्म कालीन परीपहो से व्याकुल होकर, वह त्रिदण्डी तापस बन गया । वह समवशरण के बाहर बैठता। लोगो के पूछने पर अपनी दुर्बलता स्पष्ट स्पष्ट कह देता । कोई दीक्षार्थी उनके पास आता, तो वह ऋषभ तीर्थकर के पास दीक्षित होने की प्रेरणा देता । एक बार भरत चक्रवर्ती ने आदि तीर्थंकर ऋषभ से पूछा"भगवन् । समवशरण मे स्थित साधु-साध्वियो या अन्य प्राणियो मे ऐसा कोई व्यक्ति है, जो आगामी काल मे तीर्थंकर पद पाने वाला हो। श्री ऋषभ ने कहा - भरत । समवशरण मे अभी ऐसा कोई व्यक्ति नही है। हाँ, समवशरण से बाहर मरीचि तापस ही ऐसा प्राणी है, जो इसी चौबीसी मे अन्तिम तीर्थंकर महावीर होगा । भरत चक्रवर्ती इस परिसवाद को लेकर मरीचि के पास आए, उसका अभिनन्दन किया और