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सस्कृत-भाषा का जैन-साहित्य
वह ह्रास केवल जैन-सस्कृत साहित्य मे ही आया हो ऐसी बात नहीं है, अपितु वह सार्वत्रिक ह्रास था, जो कि जैनो मे भी आया । फिर भी उसका प्रवाह सर्वथा रुक गया हो-ऐसी बात नहीं है। आज भी अनेक जैन विद्वान विभिन्न क्षेत्रो में संस्कृत-साहित्य का निर्माण कर रहे है। अणुव्रत आन्दोलन प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी और उनके सघ का इस दिशा मे विशेष परिश्रम चल रहा है। इन चार दशको मे व्याकरण, काव्य, दर्शन, निबध, टीका और स्तोत्र आदि विषयक अनेकानेक महत्त्वपूर्ण संस्कृत प्रयो का निर्माण हुआ है । उनमे भिक्षुशब्दानुशासन-महाव्याकरण, मिक्ष शब्दानुशासन बृहवृत्ति, भिक्षु शब्दानुशासन लघुवृत्ति, कालुकौमुदी, तुलसी प्रभा आदि व्याकरण प्रथ, भिक्षु चरित, अर्जुनमालाकार, प्रभवप्रबोधा, अश्रुवीणा आदि गद्य और पद्यकाव्य, जैनसिद्धान्त दीपिका, भिक्षु न्याय-कर्णिका, युक्तिवाद, अन्यापदेश आदि दर्शन-प्रथ, शिक्षापण्णवति, कर्तव्य-पत्रिशिका, मुकुलम्, उत्तिष्ठत जागृत ।।, निबंध निकुज आदि विभिन्न स्फुट अथ, शात-सुधारस टीका आदि टीका ग्रथ और समुच्चय जिनस्तुति, देवगुरु स्तोत्र जिनस्तव, कालुभक्तामर, कालुकल्याण मदिर, तुलसी स्तोत्र आदि अनेक स्तोत्र प्रथ गिनाए जा सकते है।
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