________________
संस्कृत-भापा का जैन-साहित्य
सस्कृत-व्याकरण क्षेत्र मे भी जैनो का योग बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है । जैनेन्द्र, स्वयभू, शाकटायन, शब्दाम्भोज भास्कर आदि सस्कृत व्याकरणो के पश्चात् हेमचन्द्राचार्य का सर्वागपूर्ण "हेमशब्दानुशासन" उस क्रम का उन्नत प्रयास कहा जा सकता है । उसके पश्चाद्वर्ती शब्दसिद्धि-व्याकरण, मलयगिरि व्याकरण, विद्यानन्द व्याकरण और देवानद व्याकरण रहे है । ये सब तेरहवी सदी तक के है । व्याकरण रचना का यह क्रम वही समाप्त नही हो गया। बीसवी सदी मे तेरापथ श्रमण सघ के विद्वान मुनि चौथमल जी ने भिक्षुशब्दानुशासन नामक महाव्याकरण लिखकर उस कडी को वर्तमानकाल तक पहुंचा दिया है।
___ इसी प्रकार कोश अथो मे धनजय नाममाला, अपवर्ग नाममाला, अमरकोश, अभिधान चिन्तामणि, शारदीया नाममाला आदि महत्त्वपूर्ण ग्रथ है ।
काव्यक्षेत्र में भी जैन विद्वान किसी से पीछे नही रहे है । उन्होने पद्यमय तथा गद्यमय अनेक उत्कृष्ट कोटि के काव्यो की रचना की है । उनमे पाश्र्वाभ्युदय, द्विसधानकाव्य, यशस्तिलक, भरतबाहुबलि महाकाव्य, द्वयाश्रयकाव्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, नेमिनिर्वाण महाकाव्य, शातिनाथ महाकाव्य, पद्मानदमहाकाव्य, धर्माभ्युदय महाकाव्य, जनकुमारसभव, यशोधर चरित्र, पाडवचरित्र आदि की गणना प्रमुख रूप से कराई जा सकती है।
___ नाटको मे सत्यहरिश्चन्द्र, राघवाभ्युदय, यदुविलास, रघुविलास, नलविलास, मल्लिकामकरद, रोहिणीमृगाक, वनमाला, चद्रलेखाविजय, मानमुद्रा-भजन, प्रबुद्धरोहिणेय, मोहपराजय, करुणावणायुध, द्रौपदी स्वयवर आदि उल्लेखनीय है । हेमचन्द्राचार्य के प्रधान शिप्य रामचन्द्र ने अकेले ने ही अनेक नाटको की रचना की थी। इसी प्रकार उपमितिभवप्रपचा, कुवलयमाला, आराधना-कथाकोश, आख्यान मणिकोश, कथारत्नसागर आदि कथा साहित्य द्वारा जैन विद्वानो ने सस्कृत के कथा-साहित्य को भी अपूर्व देन दी है। आदि-पुराण, उत्तर-पुराण, शाति पुराण, महापुराण, हरिवंश पुराण आदि प्रथो से उनके पुराण-साहित्य की समृद्धि को भी अच्छी तरह से जाना जा सकता है।
____ इसी प्रकार नीतिवाक्यामृत, अर्हनीति आदि नीतिनथ । समाधितत्र, योगदृष्टि-समुच्चय, योगबिन्दु, योगशास्त्र, योगविद्या, अध्यात्म-रहस्य, ज्ञानार्णव, योगचिन्तामणि, योगदीपिका आदि योग-सबधी प्रथ, सिद्धान्त शेखर, ज्योतिष रत्नमाला, गणिततिलक, भुवनदीपक, आरभसिद्धि, नारचद्रज्योतिसार, बृहत्पर्वमाला आदि ज्योतिष अथ, छन्दोनुशासन, जयकीर्ति छन्दोनुशासन, छन्दोरत्नावलि आदि छन्दोग्रथ, काव्यानुशासन, अलकार-चूडामणि, कविशिक्षा, वागभटालकार, कविकल्पलता, अलकार प्रबोध, अलकार महोदधि आदि अलकार अथ और भक्तामर, कल्याणदिर, एकीभावस्रोत्र, जिनशतक भमकस्तुति, वीरस्तव वीतरागस्तोत्र, महादेव स्तोत्र, ऋषिमडल स्तोत्र आदि स्तोत्र अथ अपने-अपने क्षेत्र के महत्वपूर्ण प्रथो मे गिनाए जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त रत्नपरीक्षा, सगीतोपनिषद्, सगीतसार, सगीतमडल, यत्रराज, सिद्धयत्र चक्रोबार, वैद्यकसारोद्धार, वैद्यवल्लभ आदि नथ भी जैन विद्वानो के विस्तीर्ण ज्ञान क्षेत्र का बोष कराते है।