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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-प्रन्थ कनक कुर्म सवृश क्रम दोय,
तासु वर्ण उन्नत नत होय ॥ १२ ॥ इस प्रकार जैन विद्वानो का रासो साहित्य के विकास में जो महत्त्वपूर्ण योगदान रहा, उसकी एक झलक पाठको के समक्ष उपस्थित की गयी है। १८ वी और १९ वी शताब्दी में भी अनेक रामाओ को रचना हुई थी, लेकिन उनके सम्बन्ध में एक अन्य लेख में प्रकाश डाला जावेगा।
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