________________
रासा साहित्य के विकास मे जैन विद्वानो का योगदान
आनन्द भैरो बाजी आनविउ सब लोग, घर घर नर नारी सब करहि सिंगारु मनोग। दिव्य वस्त्र आभूषन पहिरै अंग बनाइ, पान फूल अरु चोवा चंदन तनु महकाई ॥२३॥
ब्रह्म रायमल्ल अनन्तकीति के शिष्य थे। इन्होने नेमीश्वररास (स० १६१५) हनुमतरास (१६१६) प्रद्युम्नरास ( स० १६२८) श्रीपालरास ( १६३० ) सुदर्शन रास ( १६३३ ) और भविष्यदत्त रास (१६३३) की रचना कर रासा साहित्य की ओर जनता की अभिरुचि मे वृद्धि की। इनकी भाषा पर जयपुरी भाषा का प्रभाव है । सभी रचनाएँ बडी कृतिया है । राजस्थान के शास्त्र भण्डारो मे इनकी प्रतिया खूब मिलती हैं, जो इनको लोकप्रियता की ओर सकेत करती है। भट्टारक शुभचन्द १७ वी शताब्दी के अच्छे विद्वान थे । संस्कृत भाषा मे इनकी कितनी ही कृतिया मिलती है। हिन्दी कृतियो मे इनका पल्यविधानरास एक उल्लेखनीय रचना है। विद्या भूषण ने सवत् १६०० मे भविप्यदत्त रास की रचना करके हिन्दी प्रसार मे अभिवृद्धि की । उपाध्याय गुणविनय प्रसिद्ध विद्वान जयसोम के शिष्य थे। ये बडे साहित्य सेवी थे और इन्होने अपने जीवन मे २० से भी अधिक रचनाएँ लिखी थी । रासा अथो मे अञ्जना सुन्दरी रास (स० १६६२), कर्मचन्द-वशावली रास, जम्बूरास (स० १६७०) बारहव्रत रास (स० १६५५) आदि के नाम उल्लेखनीय है ।
१७ वी शताब्दी के अन्त मे ब्र० कपूरचद हुए जिन्होने सवत् १६९७ मे पार्श्वनाथ रासो की रचना की । कवि राजस्थानी थे। पार्श्वनाथ रासो हिन्दी की एक सुन्दर रचना है, जिसमे १६६ पद्य है । कवि ने इसे आनन्दपुर मे छन्दोबद्ध किया था । रासो की भापा का एक उदाहरण देखिएअहो नगर मे लोक अति कर जी उछाह,
खर्चे जी द्रव्य माने अधिक उचाह । धरि घरि मगल अति धणा,
घरि घरि गावे जी गोत सुधार । सब जन अधिक आनदिया,
धनु जननी तसु जिण अवतार ॥ १२४ ॥ इन्ही के समकालीन श्री कल्याणकीति जी थे जिन्होने चारुदत्तरास की रचना की थी । ये भी लोडाग्राम के निवासी थे । कवि ने इस रास की सवत् १६९२ मे रचना की थी। रचना अच्छी है एव अभी तक अप्रकाशित है । इसका एक भाग देखिए-।
मोहन रूप परी अवतरी,
सकल नारी सरे सुन्दरी।
३४७