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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
रूप अञ्चल गेमिकुमार, सुण राजमती फियो सिंगार। कर ककण बहु हीरा जडयो, पहिरि हार गज मोती भरयो॥ कुसुम सीस बंधे बहुताइ, तिलकु लिलाट न वर्णी जाय ।
नयण कज्जल मुखि तंवोल, अगि चढाइयो कुंकुम रोल ।। सवत् १५३६ मे आचार्य सोमकोति ने यशोधराराम की रचना की थी। सोमकीति अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान भट्टारक थे । यशोधरारास उनकी अच्छी कृति है। यह एक प्रवन्ध काव्य है, जो गुठली नगर मे लिखा गया था । इसकी भापा पर गुजराती का पूरा प्रभाव था। इसी शताब्दी मे एक कवि पूनो हुए जिन्होने सवाद के रूप में मेधकुमार रास की रचना की । यह रचना समाज मे बहुत प्रिय रही थी। इसलिए इसकी कितनी ही प्रतियां राजस्थान के शास्त्र भण्डारो मे उपलब्ध होती हैं । इस रचना मे २१ छद है। आचार्य जिनसेन ने सवत् १५५८ मे नेमिनाथ राम को रचना की। जिसकी एक प्रति जयपुर के बडे मदिर के शास्त्र-भण्डार में उपलब्ध होती है। कवि सहज सुन्दर रत्नसमुद्र के शिष्य थे। इनके रासा ग्रथो में ऋषिदत्तारास (म० १५७२) आत्मराज रास (स० १५८३) जम्बू अतरगरास (स० १५७२) परदेशी राजानोरास, प्रसन्नचन्द्र गजापि रास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इसी शताब्दी मे एक और कवि हुए जो सस्कृत के प्रकाड विद्वान थे। उनका नाम है भट्टारक ज्ञान भूपण। इनकी तत्त्वज्ञान तरगिणी एक श्रेष्ठ रचना है। इन्होने पट् कर्म रास की रचना करके रासो साहित्य के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित किया। रास की भाषा पर गुजगती का प्रभाव है। इसकी कितनी ही प्रतियां राजस्थान के शास्त्र भण्डारो मे उपलब्ध होती है।
१७ वी शताब्दी मे भी रासा साहित्य लिखने मे विद्वानो ने बहुत रुचि ली एव जनता मे भी उनके पठन-पाठन की खूब रुचि रही । विनयसमुद्र राजस्थानी विद्वान थे । इन्होने कितनी ही रचनाओ का निर्माण कर अपनी विद्वता का अच्छा परिचय दिया। वे बीकानेर के रहने वाले थे। रासो साहित्य मे इनकी चित्रसेन पद्मावती राम (स० १६०४) शीलरास (स० १६०४) नलदमयन्तीगस (स० १६१४) चन्दनवाला रास एव इलापुत्ररास आदि कृतियो के नाम उल्लेखनीय है । कुशललाम प्रसिद्ध राजस्थानी विद्वान थे। इनकी तेजसाररास (स० १६२४) तथा अगडदत्तरास (१६२५) राजस्थानी भाषा की अच्छी रचनाएं है । कविवर रूपचन्द का नाम जैन समाज मे अत्यधिक प्रसिद्ध है । ये हिन्दी के उच्चस्तर के कवि थे । इनके द्वारा लिखा हुआ नेमिनाथ रास एक सुन्दर कृति है। यह कवि की लघु कृति है, जिसमे नेमिनाथ के जीवन पर प्रकाश डाला गया है । रास मे ५० छन्द है । इसमे आए हुए वसन्त ऋतु वर्णन का एक उदाहरण पढिए -
गुंजत अलिगुन सनि जनु कियो धनुष टंकार, तीछन तीर भए जनु मकुलित मधुरस हार। कुसुमित कनक केतुको कुसुम मनौती नीर, विरही जन मन वेधे घाइल भए सरीर ॥ २० ॥
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