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रासा साहित्य के विकास मे जैन विद्वानो का योगदान
काष्ठ माहि आगिनि जिमि होइ, कुसुम परिमल माहि नेह ।
नारे सोत जिम नीर, तेम आत्मा बस जगत सरीर ॥ ब्रह्म जिनदास के एक शिष्य गुण कीति ने रामसीतारास की रचना की । यह काफी बडी कृति है । इसे हम जैन रामायण भी कह सकते है। इनकी भापा ब्रह्म जिनदास की भापा से मिलती जुलती है । सवत् १४६६ मे बडतपागच्छीय साधु कीर्ति ने विक्रम चरित्र रास की रचना की।
१६ वी शताब्दी मे भी रासा साहित्य उतना ही लोकप्रिय रहा, जितना इसके पूर्व था। ऋषि वर्द्धन सूरि ने सवत् १५१२ मे नलदमयन्तीरास की रचना की थी। ये अञ्चल गच्छीय जयकीति सूरि के शिष्य थे । रास का रचना स्थान चितौड था । इसी समय मतिशेखर ने भी तीन रासा ग्रथ की रचना की। इनमे धन्नारास (स० १५१४) एव मयणरेहारास (स० १५३७) के नाम उल्लेखनीय है । धन्नारास का एक उदाहरण देखिए
वान प्रभावइ मुगतिर जासिइ जीवड वान वडउ जन जुगत॥ कुगति निवारण हारी ॥२।२१ ॥ भविया दान धना जिम दीजइ मुनिष जनम तणउ फल लीजइ । कीजन भावन पुरे ॥ २॥ २२॥ इह भवि परिभवि वान प्रभावइ । करिय राज रिद्धि सह आपइ ।
जायह दुखि दुह दरे ॥ ३ ॥ २३ ॥ पूर्णिमा गच्छीय उदयभानु ने मवत् १५६५ मे विक्रमसेन रास की रचना की थी। यह भी अच्छी कृति है । इसी शताब्दी मे तपागच्छीय धर्मसिंह ने विक्रमरास की रचना की। खरतर गच्छीय धर्म समुद्र गणि ने भी कितने ही रासा प्रथो की रचना की थी। इनमे सुमित्रकुमाररास (१५६७) कुलध्वज कुमाररास (१५६) रात्रिभोजनरास, सुदर्शनराम और शकुन्तलारास के नाम उल्येखनीय है । शकुन्तला रास का एक उदाहरण देखिए
राय अन्याय तणउ रखवाल पाल पृथ्वी तणउसहू कहइए।
ए निरधार ऊपरि हथियार भार सोचा के ही लहइए ॥ आदित्यवार कथा के रचियता भाउ कवि ने भी नेमिनाथरास की रचना कर रासा साहित्य के भण्डार मे अभिवृद्धि की । नेमिनाथरास एक अत्यन्त सुन्दर कृति है, जिसमे भगवान नेमिनाथ के जीवन पर एव मुख्यत उनकी वैवाहिक घटना का सुन्दर वर्णन किया है। एक उदाहरण देखिए