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________________ गुग्दैव श्री ग्ल मुनि स्मृति-ग्रन्थ १३. कुपारपालरास इम कृति के कवि है, देवप्रभ मूरि और रचना कान है गवन् १४३” के आमपाम उममे छन्दो की मख्या ४३ है । राम में गुजरात के मम्राट् कुपारपाल का जीवन चग्नि अकिन है । यह गम ग० भोगीलाल माडेमग द्वाग भारतीय विद्या में प्रकागित हो चुका है। १४. कलिकालरास यह हीरानदमूरि की कृति है। कवि ने उसे मवत् १४८६ में छन्दोबद किया था । उम में कलियुग के प्रभाव का वर्णन है । कवि राजस्थान के निवासी थे। गम को श्री अगग्चद भवग्नान नाहटा ने हिन्दी अनुशीलन में प्रकाशित करा दिया है । उक्त रचनाओ के अतिरिक्त मप्नक्षेत्रगम, पेयटराग, कच्छनिगम, आदि और राम है जो १५. वी गताब्दी के मध्य काल तक लिखे गए । १५ वी शताब्दी के अन्तिम पाद में भट्टारक नकलकानि एव ब्रह्म जिनदाम के नाम विशेपत उल्लेखनीय है । मकलकीति अपने समय के नवग्दम्त विद्वान थे। उन्होंने मम्मृत भापा मे तो कितने ही ग्रयो को छन्दोबद्ध किया ही या, हिन्दी में भी उन्होन आठ लघु कृतिया लिम्वी। इनमें दो रचनाएं रामा माहित्य की भी है और उनके नाम है-सोलहकारण गम और मारगीमा मणिगम । सारसीबामणि उपदेगात्मक रचना है और मोलहकारण गम में इस व्रत के महात्म्य का वर्णन किया गया है। कवि की भाषा का एक उदाहरण देखिए जीव-दया प्रत पालीइए मन कोमल कीजि । आप सरीखा जीव सर्व मन माहि घरीजई ।। ब्रह्म जिनदाम हिन्दी के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी में ६० में अधिक ग्चनाएँ लिगकर हिन्दी जगत में एक नया उदाहरण उपस्थित किया। इन रचनाओं में ३ गमा ग्रय है, जिनको कवि ने विभिन्न स्थानो पर बिहार करते हुए लिखा था । इनमें अधिकाग गम बडी वटी कृतिया है और प्रवन्ध काव्य के रूप में लिखी गई है । गुजरात प्रदेश में इनका विशेष सम्बन्ध होने से इनकी रचनाओं पर गुजराती भापा का अधिक प्रभाव है । ब्रह्म जिनदाम की रचनाएँ राजस्थान में अत्यधिक प्रिय रही है, और सलिए इनकी हस्त लिखित प्रतिया राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारी में प्रचुर सख्या मे मिलती है, इनको कुछ रचनाओ के नाम निम्न प्रकार है-कर्म-विपाक राम, सुदर्शनराम, धोपालराम, अम्विकाराम, जम्बूस्वामीरास, हनुमतराम, होलीरास, सम्यक्त्वरास, रात्रिभोजनराम, अजितनाथरास, नागकुमारराम, जीवधररास, नेमीश्वररास, रामायणरास, धर्मपरीक्षारास, भविष्यदत्तगस, मुकुमालस्वामीरास, मुभूमचक्रवतिरास । कवि की भापा का एक उदाहरण देखिए पाषाण माहि सोनो जिम होई, गोरस माहि जिमि घृत होई। तिलसारे तल बने जिमि प्रग, तिम शरीर आत्मा अभग ।।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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