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रासा साहित्य के विकास मे जैन विद्वानो का योगदान
८. नेमिनाथरास
सुमतिगति ने इसे सवत् १२७० मे समाप्त किया था। इसमे बाई सवे तीर्थकर भगवान के जीवन का वर्णन किया गया है । इसकी एक प्रति वृद्ध ज्ञान भण्डार जैसलमेर में सगृहीत है । रचना राजस्थान के किस प्रदेश में छन्दोबद्ध की गई थी, इसका उसमे कोई उल्लेख नही है ।
६. गयसुकुमाल रास
यह कृति जगतचन्द्र के शिष्य देल्हण कवि द्वारा छन्दोबद्ध की गई थी । यद्यपि रास मे रचना तिथि नही दी गई है, लेकिन सूरिजी का समय १३ वी शताब्दी होने से रास का समय भी यही होगा । इसमें गजसुकुमाल मुनि के जीवन का वर्णन किया गया है । यह कृति भी 'रास और रासान्वयी' काव्य मे प्रकाशित हो चुकीं है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति अभय-प्रथालय बीकानेर में सगृहीत है ।
१० समरारास
इसके रचयिता अम्बदेव सूरि है। रास की रचना तिथि सवत् १३७१ के आस पास की है । इसका रचना स्थान अणहिलपुर पाटन है । इसमे सघपति समरसिंह की तीर्थयात्रा का वर्णन किया गया है । इन्होने शत्रुजय तीर्थ पर आदिनाथ की प्रतिष्ठा स्थापित की थी। यह रास प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है ।
११. पंचपांडव
यह रचना शालिभद्र सूरि की है, जिसे उन्होने सवत् १४१० मे समाप्त की थी । रचना अच्छी है। रास की कथा पाडव पुराण पर आधारित है। पाडवो के जन्म, महाभारत युद्ध एव उसमे विजय तथा प्रत में नेमिनाथ से दीक्षा लेकर वैराग्य लेने की कथा है। रास का रचना स्थान गुजरात प्रदेश है । यह रासभी रास और रासान्वयी काव्य में प्रकाशित हो चुका है ।
१२. गौतमरास
यह विनयप्रभ सूरि की रचना है। इसकी रचना तिथि स० १४१२ है और रचना स्थान खम्भात रहा है। इसमे भगवान महावीर के प्रथम गणधर गौतमस्वामी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है । गौतम पहिले ब्राह्मण थे, लेकिन बाद मे भगवान महावीर से शास्त्रार्थ मे पराजित होकर अपने पाच- सौ शिप्यो के साथ उनके शिष्य बन गए और अन्त मे केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया। इस रासा की प्रतियां राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारो मे काफी उपलब्ध होती हैं। वैसे यह रास भी रास और रासा - न्वयी काव्य में प्रकाशित हो चुका है ।
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