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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति ग्रन्थ
२. बुद्धिरास
यह भी शालिभद्र सूरी की ही कृति है । इसमे श्रावको को सदाचरण का उपदेश दिया गया है। रास मे ६३ छन्द है । इसकी रचना तिथि नही दी हुई है। यह भी रास और रासान्वयो पुस्तक मे प्रकाशित हो चुका है ।
३. जीवदयारास
यह सवत् १२५७ की कृति है और उसके ग्रथकार कवि आसगु है । कवि ने इमे जालौर नगर मे छन्दोबद्ध किया था। रास का मुख्य विषय श्रावकधर्म का निरूपण करना है । इसमे जीव- दया पालन पर विशेष जोर दिया गया है। इसकी छन्द सख्या ५३ है और यह कृति भी उक्त पुस्तक में प्रकाशित हो चुकी है।
४. चन्दनबाला रास
इस कृति के रचयिता भी कवि आसगु है । इसे उन्होंने जालौर के निकट महिजगपुर (पश्चिमी राजस्थान) मे छन्दोबद्ध किया था । कवि ने इसमे चन्दनबाला के सतीत्व, सयम एव चरित्र का यशोगान गाया है । सती चन्दनवाला अन्त में भगवान महावीरसे दीक्षा लेकर अपना आत्म-कल्याण करती है । इसमे ३५ छन्द हैं, जो "राजस्थानी भारती' मे श्री अगरचन्द नाहटा द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है।
५. स्थूलभद्ररास
यह रास कवि धर्मा द्वारा लिखा गया था। कवि ने इसे सवत् १२६६ मे पूर्ण किया था । इसकी एक प्रति अभय-प्रथालय बीकानेर मे सुरक्षित है। रास में आचार्य भद्रबाहु के समकालीन आचार्य स्थूलभद्र के जीवन पर प्रकाश डाला गया है ।
६. रेवन्त गिरिरास
यह विजयसेन मूरी की कृति है । इसका रचना काल स० १२८८ है । इसमे रेवन्त गिरि तीर्थ के महत्व पर प्रकाश डाला गया है । यह एक ऐतिहासिक रासो है। इसकी रचना सोरठ देन में हुई मानी जाती है। इसमे कुल ७२ छन्द है तथा रचना अच्छी है ।
७. मिजगदरास
अभी दो रचनाएँ
इसके रचयिता पल्हण कवि हैं जो १३ वी शताब्दी के विद्वान थे । ववि की और उपलब्ध हुई है। इस रास मे कुल ५५ छन्द है । इनमे आबू पर्वत के महात्म्य का वर्णन किया गया है । विमल मत्री एव तेजपाल मत्री द्वारा किए गए मन्दिर निर्माण का विस्तृत वर्णन है । यह रास भी रास और रासान्वयी काव्य में प्रकाशित हो चुका है ।
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