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________________ रासा साहित्य के विकास मे जन विद्वानो का योगदान भाषा मे रचित विनयचन्द्र का चनडीरास तथा निर्भर पचमीरास प० योगदेव का मुक्तानुप्रेक्षा रास एव जन्हिण का अनुप्रेक्षा रास आदि महत्वपूर्ण कृतिया है, जो अध्यात्म एव वैराग्यरस से ओत प्रोत है। हिन्दी भाषा मे जैन विद्वानो ने रासा साहित्य से इस भाषा के भण्डार को विपुल रूप से भर दिया । १३ वी शताब्दी से लेकर १७ वी शताब्दी तक दस वीस अथवा सौपचास कृतिया लिखकर ही चैन नही लिया, किन्तु उन्होने इन शताब्दियो में चार सौ से भी अधिक रासा प्रथ लिखे । इस प्रकार इस साहित्य के द्वारा उन्होने हिन्दी भाषा के प्रचार एव प्रसार मे महत्वपूर्ण योग दिया। ये रासा प्रथ केवल एक विषय पर ही लिखे हुए नहीं है, किन्तु जीवन की प्रत्येक समस्या पर इनमें विचार किया गया है । एक ओर ये चरित काव्य है, तो दूसरी ओर ये उपदेशात्मक है। इनमें मानव मात्र को सुपथ पर लगाने के गीत गाए गए है। किसी किसी रासा मे ऐतिहासिक तथ्यो का भी अच्छा वर्णन मिलता है । लेकिन अधिकाश रासा ग्रथ काव्य है, जिनमें किसी व्यक्ति विशेष के चरित्र का वर्णन किया गया है। रासा काव्य का यह रूप जैन विद्वानो के लिए इतना अधिक प्रिय रहा है कि बहुत कम ऐसे विद्वान होगे जिन्होने एक या दो रासा प्रथ नही लिखे हो । प्र० जिनदास ने तो अकेले ने 20 से अधिक रासा काव्य लिखकर हिन्दी साहित्य में एक नया उदाहरण उपस्थित किया है, इनका परिचय आगे दिया जावेगा। ये रामा प्रथ काव्यत्व की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु भाप एव छन्द शारत्र की दृष्टि से भी ये अत्यधिक महत्वपूर्ण कृतिया है । विभिन्न छन्दो, गग-गगनियो, बालो एव भास-रागो का इनमे खूब प्रयोग किया गया है । दोहा, चौपाई, वस्तुबध छद इनके प्रिय छन्द है, जिनका प्रयोग अधिकाश रासो मे किया गया है। इन्हे लोग गाते थे और उत्सवो एव अन्य आयोजनो के अवसर पर जनता को गाकर सुनाया करते थे। हिन्दी भापा के क्रमिक अध्ययन की दृष्टि से भी ये प्रथ महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते है और हमे इनके पठन-पाटन से एक नयी दिशा मिल सकती है। प्रकृति-चित्रण भी इनमे से कितने ही रासो मे अच्छा हुआ है । जैन कवियो ने वाग, उद्यान, वन, अट वी मे भ्रमण का कही न कही वर्णन अवश्य किया है । और उस अवसर पर विभिन्न वृक्षो एव फल फूलो का खूब वर्णन करते है । नये नये पौधो एव फलदार वृक्षो के नाम गिनाकर इस दिशा में अपनी विद्वता का परिचय देते हैं । यहाँ एक और बात स्पष्ट कर देने की हे और वह यह है कि ये रासा प्रथ काव्यात्मक और कथात्मक अधिक होते है, क्योकि कवि को कथा को कह कर पाठको को सुपथ पर ले जाने की अधिक इच्छा रहती है । केवल विनोद के लिए उन्होने बहुत ही कम रचना लिखी है । उनका यह प्रयास सर्वथा प्रसशनीयहै । अव यहा इस साहित्य की प्रमुख कृतियो पर प्रकाश डाला जा रहा है । १. भरतेश्वर बाहुबलि रास यह सभवत हिन्दी भाषा का प्रथम रासा ग्रथ है, जिसके रचयिता शालिभद्र सूरी है। इसकी रचना तिथि सवत् १२३१ है । रास मे प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ के दो पुत्र सम्राट् भरत एव बाहुबलि मे हुए युद्ध का प्रमुख वर्णन है । रास श्री लालचन्द भगवानदास गाधी द्वारा सम्पादित रास और रासान्वयी काव्य मे प्रकाशित हो चुका है ।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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