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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
भेजना आदि बातें मिलती है । कवि समय को भी कुछ बातो का समावेश हुआ है। लोक-निरुक्ति लोक प्रचलित नामावली मिलती है, जिसमे लोकगत भाषा तथा लोगो की रुचि का पता लगता है । प्रकार अपभ्रंश का यह साहित्य लोक-जीवन और संस्कृति से पूर्णतया प्रभावित है ।
परम्परा र प्रभाव
अपभ्रंश के कथाकाव्यों पर संस्कृत के प्राचीन काव्यो का परम्परागत रूप में थोडा बहुत प्रभाव लक्षित होता है । किन्तु आत्म-विनय, प्रदर्शन, नगर-वन-वर्णन आदि मे जो यत्किचित् प्रभाव दिखाई पडता है, वह एक तो बहुत कम है दूसरे हम उसे सीधा संस्कृत का प्रभाव न मान कर संस्कृत का प्राकृत पर और प्राकृत से अपभ्रंश पर अप्रत्यक्ष रूप से संस्कृत का प्रभाव कह सकते हैं ।
aria कथाarari का हिन्दी - साहित्य पर प्रभाव
अपभ्रंश तथा हिन्दी के प्रवन्धकाव्यो में काव्य- रुढियो, प्रवन्ध-रचना-शैली, कथानक - रुढियो तथा रीतिकालिक प्रवृत्तियो मे बहुत कुछ समानता मिलती है। अपना और हिन्दी के प्रेमास्यानक काव्यो की कथा-वस्तु और रचना-पद्धति मे तो अदभुत साम्य लक्षित होता है । इस साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियो तथा विशेषताओ की जानकारी से यह स्पष्ट हुए बिना नही रहता कि सूफी तथा प्रेमाख्यानक काव्यों की रचना कडवक तक शैली के ही विकासक्रम मे हो कर फारसी की मसनवी शैली मे नही हुई । क्योकि वस्तु-वन्ध, कथावस्तु, काव्य तथा कथानक रूढियो तथा भावो मे सूफी तथा प्रेमयानक काव्य अपन - साहित्य से प्रभावित हैं । फिर, अकेले मसनवी शैली का नाम ले कर फारसी की दुहाई क्यो दी जाए ? स्पष्ट रूप से अपभ्रंश के प्रबन्धकाव्यो की रचना पद्धडिया बन्ध मे हुई है । पद्धडिया चौपाई का ही पुराना नाम जान पडता है । साधारणतया चोपाई के साथ दोहे की भाति अपनश प्रवन्ध काव्यो द्विपदी तथा अन्य उसी जाति के छन्दो का व्यापक प्रचलन रहा है, पर परवर्तीकाल में वह दोहा या द्विपदी में सीमित हो गया, जिसके दर्शन हमें हिन्दी के प्रबन्ध काव्यो में होते है । वस्तु बन्ध और रचना शैली में ही नही भावो में भी कही कही काव्य लक्षित होता है। हिन्दी के चौपाई, दोहा, छप्पय, रौला, दुर्मिल, सोरठा, गीति, कुण्डलिया, उल्लाला पद्धडी या पद्धरि, हरिगीतिका और बरवे आदि छन्द प्राकृत की धारा से विकसित अपभ्रंश -काव्य धारा से ही हिन्दी में निश्चय रूप से स्वीकृत अथवा ज्यो के त्यो ग्रहण कर लिए गए है । अतएव कई बातो में हिन्दी साहित्य पर अपभ्रंश - साहित्य एव कथाकाव्यों का प्रभाव लक्षित होता है ।
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