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________________ भविसयतकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य दृष्टि से यह कथाकाव्य-साहित्य अत्यन्त महत्व पूर्ण है। इस साहित्य के अध्ययन करने से स्पष्ट पता लगता है कि समय-समय पर लोक-बोली एव भाषा की भाति शास्त्रीय वृत्त तया जाति-वन्धो से हट कर नये-नये छन्द तथा मात्रिक वृत्तो का प्रयोग साहित्य मे होता रहा है । अतएव भापा की भाति ही विभिन्न रूपो और देशी राग रागिनियो मे प्राकृत के छन्द साहित्य मे देशी भापा के साथ ढलते रहे है तथा विभिन्न नाम-रूपो मे ख्यात एव प्रचलित रहे है। उदाहरण के लिए-सोरठा, मरहट्टा, चर्चरी, वसतचच्चर, सगीत, गीति और रास आदि लोकप्रसिद्ध छन्द है, जो धीरे-धीरे अपभ्रग-कविता के प्रचलन के साथ ही काव्य में प्रयुक्त होने लगे थे । लोक-तत्त्व अपभ्र श के कथाकाव्यो की कथा का विचार करने से यह निश्चय हो जाता है कि लोक मे इन कथाओ के रूप प्रचलित रहे है। कया भानक-रूपो के अध्ययन से जो निष्कर्प हमारे सामने आते है, उनके आधार पर कथाभिप्रायो मे यह भी सुस्पप्ट हो जाता है कि ये कथाएँ भारतवर्ष मे तो प्रचलित रही ही है, पर किसी न किसी रूप में विदेशो की यात्रा भी इन्होने की है। इन कथाओं में आर्य सस्कृति की पूरी छाप तो लगी ही मिलती है, पर अनार्य-सस्कृति में भी बहुत कुछ प्रभावित है। अभिप्रायो (Motives) के अध्ययन और वर्गीकरण मे हमे इस बात का पता लगता है कि अपभ्रश के इन कथाकाव्यो मे चौदह प्रकार के कथाभिप्राय मिलते हैं, जो मसार के लोक-साहित्य की सक्षिप्त अनुक्रमणिका मे में अपना स्थान सरलता से घोपित करते हैं। सामाजिक प्राचार-विचार इन कथाकाव्यो में सामाजिक आचार-विचारो का पूर्णतया ममावेश हुआ है । दसवी गताब्दी से ले कर सतरवी शताब्दी तक के भारतीय ममाज की एक भलक स्पष्ट रूप मे हमे इस साहित्य मे मिलती है। कई प्रकार के रीति-रिवाज, देवी-देवताओ की पूजा, मनुष्य-वलि आदि कुरीतियो का भी उल्लेख इस माहित्य में हुआ है। लोक-जीवन और सस्कृति लोक-जीवन और संस्कृति के अन्तर्गत निम्नलिखित वातो का वर्णन मिलता है-धार्मिक विश्वास, लोक-रूढिया, जातिविपयक मामान्य विधाम, सामाजिक आचार-विचार, लोक-निरुक्ति इत्यादि । धार्मिक विश्वासो मे हमे देवी देवताओं की पूजा के साथ ही यक्ष और यक्षणियो की पूजा का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार आलोच्य काल में बहु देवी-देवतावाद तथा कई प्रकार की परवर्ती कालिक मान्यताएँ मिलती है, जिनका जैनाचार्यों ने खुल कर विरोध किया है । जाति विपयक विश्वासो मे जैनियो के रीति-रिवाज तथा धार्मिक बातो का उल्लेख हुआ है । लोक रूढियो मे हमे शकुन-अपशकुन, स्वप्नदर्शन, ज्योतिपियो की भविष्यवाणी का पालन, दूरस्थ देश में कांआ उडाकर पुत्र या पति के पास सन्देश ३३७
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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