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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्य भाषा जिनदत्तकथा को छोड़ कर मुख्यतया अपभ्रश के कथाकाव्यो की भापा सग्ल तथा गाम्य और लोक-जीवन के मेल को भापा है। प्रयुक्त भाण में बोलचाल के मन्द मुहावरे लोकोक्तियो एव मूक्तियों के माथ ही सस्कृत से वने या विगडे हुए गन्दो को भी प्रचुरता है । जि० क० मे शब्दो को नोड-मगेड विशेप रूप से मिलती है। किन्तु विगडे हुए गन्दो मे गम्कृत मे उधार लिए गए शब्दो की ही अधिकता है देशन शब्दो मे विकार की प्रवृत्ति नही मिलती । वस्तुन अपभ्रम भाषा में तन्मम शब्दो की अपेक्षा तद्भव और देशज शब्दो का प्राधान्य है। शैली ___ अपभ्रश कयाकाव्य प्रवन्धकाव्य को भानि नन्धिबद्ध है। उनमें मन्धियो को ग्चना कडवको मे हुई है। यद्यपि आ० स्वयम्भू ने कडवको मे नियत पक्तियों का उल्लेख किया है, किन्तु न कयाकाव्यो में इसका कोई नियम नहीं मिलता। एक कडवक मे आठ मे ले कर चौवीम पक्तिया तक आलोचित कथाकाव्यो में देखी जाती है। ययार्य मे, प्रबन्धकाव्य के लिए कडवको की मग्या का न तो कोई नियम है और न विधान ही । किन्तु सामान्यत एक मन्धि मे दम मे चौदह के बीच कडवको की नरया मिलती है। अपभ्रश के कथाकाव्यो मे कम से कम ग्यारह और अधिक से अधिक छियालीम कडवक एक मन्धि में प्रयुक्त है। अलंकार आलोचित कयाकाव्यो मे मार्धम्य या औषम्यमूलक तथा लोकव्यवहार-मूलक अलकारो की मुस्यता है। प्रयुक्त अलकारो मे जहां पारम्परित रूढ उपमानो का प्रयान है, वही लोवगत उपमानो की मजीवता भी उत्कृष्ट बन पडी हे । रूल उपमान भी कही-कही कयन की शैली तथा परिवर्तनगत वैविध्य मे नये-से बन गए है । जैसे कि नयनो की उपमा के लिए साधारणतया मृग, मोन, रक्तकमल तथा कही-कही मजन पक्षी से दी जाती है, किन्तु इन कथाकाव्यो मे कही-कही कमल के पत्तो से दी गई है। उसी प्रकार केश-कलापो को मदन डोरी का बना हुआ पाश कहना, माये को काम का विजयपट्ट वताना, कपोलो पर लटकती हुई अलको को कामदेव का धनुप और वाण कहना इत्यादि । लोकगत उपमानो मे भी कुछ कवि की कल्पना से प्रसूत है और कुछ लोक-जीवन मे गृहीत । इस प्रकार अलकारो की स्वाभाविकता और सुन्दरता इन कथाकाव्यो मे भलीभाति लक्षित होती है । छन्दोयोजना अपभ्रश के इन कथाकाव्यो मे मुख्य रूप से मात्रिक छन्द प्रयुक्त है । यद्यपि वणिक वृत्तो का प्रयोग भी मिलता है, पर कही-कही वे मात्रिक छन्दो के साचे मे और कही-कही प्रकृत रूप मिलते है । छन्दो की ३३६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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