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________________ भविसयतकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य सचारी तथा अनुभावो का विधान भी इन कथाकाव्यो मे लक्षित होता है । यही नही, घटनाओ की भाँति भावो मे संघर्ष और जीवन पर उनका प्रभाव स्पष्ट रूप से अपभ्रश के कथाकाव्यो में दिखाई पड़ता है। सभी कथाकाव्यो का पूर्वार्द्ध शृगार के सयोग और वियोग दोनो ही पक्षो से अनुरजित है। किन्तु लगभग सभी कथाकाव्यो का पर्यवसान शान्त-रस में होता है। इसलिए शृगार और शान्त सामान्यतया दो ही रस मुख्य है । लेकिन म० भ० शि० क० और मि० क० मे वीर रस का भी मधुर परिपाक हुआ है ।अन्य रसो मे हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और अद्भुत का भी सनिवेश कही कही हुआ है। चरित्र-चित्रण यद्यपि इन कथाकाव्यो के नायक राजपि वश के अथवा प्रत्यात नहीं है पर राजोचित आन-वान तथा उदात्त गुणो से युक्त है । सनत्कुमार और श्रीपाल तो स्पष्ट रूप में राजपुत्र है । अन्य नायक वणिकपुत्र है । वे धीर-वीर ही नहीं, क्षमाशील और उदार भी हैं। उनमे जहाँ दाक्षिण्य तथा आत्म विनम्रता है, वही साहस तथा क्षात्रोचित आत्मतेज एव दर्प का उज्जवल प्रकाश है । वे स्वाभिमान से भरे पूरे तथा अन्याय का प्रतिकार करने वाले है। उनमे मधुरता और सरलता का अद्भुत मिश्रण है। इस प्रकार नायक उदात्त गुणो से समन्वित होने पर भी असहाय, दीन, विवश, किकर्तव्यविमूढ और सकटापन्न भी चित्रित है। उनके जीवन मे जहां पिता का तिरस्कार, भाई का छल-कपट, धर्म-पिता का विश्वामघात, आधि-व्याधि आदि विघ्न-बाधाओ की भरमार है वही माता का स्नेह, प्रियतमा की सेवा शुश्रूपा और पुण्यजनित सुख-वैभव तथा देवी सयोगो की मधुरता परिव्याप्त है। संवाद-सरचना ___ अपभ्रश के कथाकाव्यो मे सवाद-सरचना कई रूपो मे मिलती है । यदि जि० क० के सवाद अलकृत है, तो म० क० मे सरल, स्वाभाविक और सजीव है । प्राय सभी कथाकाव्यो मे सवादो की मधुरता और सरसता लक्षित होती है। जि० क० मे कुछ मवाद गीति शैली में वर्णित है। कही-कही हाव-भावो का प्रदर्शन तथा व्यग्य का भी उचित समावेश हुआ है । लम्बे और छोटे दोनो प्रकार के सवाद आलोच्य साहित्य मे मिलते है। वि० क० मे तो कुछ सवाद कहानी ही बन गए है और कुछ सवाद अधिक लम्बे हो गए है, किन्तु सि० क० मे सवाद सक्षिप्त और मधुर है । इन सभी कथाकाव्यो मे वातावरण तथा दृश्यो के बीच सवादो की योजना हुई है । भापा भी सवादो के अनुकूल है । इन सवादो मे नाटकीयता, वाक्चातुर्य' कसावट तथा भावो का पूरा-पूरा प्रकाशन अभिव्यक्त है । सक्षेप मे, सवादो क वीच चलते हुए वर्णनो का समावेश, वातावरण, दृश्य एव चित्रो के वीच सवाद-योजना, सवादो मे कथा की आवृत्ति, चलती हुई भाषा मे मधुर तथा सरल सवादो की रचना और सरलता, सजीवता की अभिव्यजना आदि विशेषताएं अपभ्रश-कथाकाव्यो मे सामान्य रूप से मिलती है। ३३५
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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