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________________ भविसयतकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य काव्य मुक्तक महाकाव्य एकार्थ काव्य खण्डकाव्य । एकार्य काव्य साकाव्य गीत दोहा चउपई प्रकीर्णक (स्तोत्र, पूजा) पुराणकाव्य परितकाव्य कथाकाव्य ऐतिहासिक प्रेमाख्यानक व्रतमाहात्म्यमूलक उपदेशात्मक कथाकाव्य और चरितकाव्य कथावस्तु की दृष्टि से कथाकाव्य में लोकवताएं किन्ही कथाभिप्रायो तथा रूढियो के साथ निबद्ध मिलती है। किन्तु चरितकाव्य की वस्तु पुराणो से उद्धृत एव ऐतिहासिक अनुश्रुतियो से सम्बद्ध देखी जाती है। रचना और शैली की दृष्टि से भी दोनो में अन्तर लक्षित होता है। अपभ्रंश-कथाकाव्य की प्रत्येक रचना की कथा भारतवर्ष मे या विदेशो मे मिलते-जुलते तथा समान वृत्तो मे किसी न किसी रूप मे मिलती है । कही-कही तो बहुत ही अधिक साम्य लक्षित होता है । अतएव कथानुबन्ध तथा कार्यावस्थाओ मे दोनो मे भेद स्पष्टतया दिखाई पडता है। सक्षेप मे, अपभ्रश के कथाकाव्य और चरितकाव्य में निम्नलिखित बातो मे अन्तर मिलता है १ कथा की भाति कथाकाव्य मे कहानी के तत्वो का समावेश रहता है। कथा स्वाभाविक तथा गतिशील रहती है । किन्तु चरितकाव्य में घटनाओ के विस्तार मे दब कर कथा रुक-रुक कर चलती है। २ कथा किसी उद्देश्य विशेष को लेकर चलती है और इसीलिए उद्देश्य प्राप्ति के साथ ही कथा समाप्त हो जाती है। परन्तु चरित काव्य मे नायक के समूचे जीवन का ही विस्तार से कथन होता है और नायक का फल ही काव्य-रचना का फलागम माना जाता है। ३ कथाकाव्यो मे पताका-नायक और पताका-कथा की रचना नही मिलती । किन्तु चरितकाव्यों मे स्पष्ट रूप से देखी जाती है । ४ कथाकाव्य मे पात्र एक से अधिक बार कथा को दुहराते है, पर चरितकाव्य मे यह प्रवृत्ति नहीं मिलती।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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