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________________ भविसयतकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य नही लिखा गया। अतएव अपभ्रश से हमारा अभिप्राय अहीरो की बोली से न हो कर प्राकृतो की उस उत्तरकालीन विकसित अवस्था से है, जिसका मूल रूप हमे वैदिक और अवेस्ता मे यत्किचित् रूप में सुरक्षित मिलता है, तथा जो नव्य भारतीय आर्य भाषाओ की पुरोगामिनी भाषा है। इस प्रकार वैदिक युग से ले कर भाषा का जो प्रवाह प्राकृतो मे विकासशील रहा, वही मध्ययुग मे अपभ्रश की धारा मे सचरित हो कर प्रवाहित एव विकसित रहा है और इसीलिए अपभ्रश मे प्राकृतो की लगभग सभी विशेषताए विद्यमान है। ___ सक्षेप मे, अपभ्रश लोक-जीवन एव परम्परा की भाषा है, जो अपने विकसित रूप मे आज हमे हिन्दी के ढाचे मे ढली हुई दिखाई पड़ती है। अपभ्रंश-साहित्य का युग ___ सुनिश्चित रूप से छठी शताब्दी से लेकर सतरहवी तक अपभ्र श-साहित्य की रचना विभिन्न विधाओ मे होती रही है । अपभ्रश-साहित्य का यह युग इतिहास मे मुख्यतया राजपूत-काल कहा जाता है । राजपूतो का देश के सभी भागो मे प्राबल्य रहा है। उत्तरी भारत के राजपूतो मे चौहान, परिहार, तौमर और पवार तथा दक्षिण मे चन्देल, कलचुरि या हैहय, गाहडवाल और राष्ट्रकूट मुख्य रहे है। आलोच्यकाल मे राजपूत गुजरात के सभी प्रदेशो मे फैल गए थे। राजनैतिक दृष्टि से यह युग उथल-पुथल का रहा है, जिसमे कई विदेशी शक्तियो ने भारतीय केन्द्रीय सत्ता को हथिया कर अपना राज्य विस्थापित करने की चेष्टा की है। यद्यपि अपभ्र श-साहित्य मे सामन्तकालीन तथा राजपूतकालिक राजनैतिक तथा सामाजिक झलक मिलती है, किन्तु राजनैतिक सघर्षों का एक बड़ी-बड़ी घटनाओ का अपभ्र श के किसी भी कथाकाव्य-लेखक ने अपनी रचना मे उल्लेख नही किया। प्रशस्ति मे अवश्य हमे मुहम्मदबिन तुगलक का राज्य-शासन तथा उसके समय मे घटित होने वाले अकाल का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार ग्वालियर के तौमरवशी राजा डूगरसिंह तथा मथुरा-भरतपुर के यदुवशी राजाओ का उल्लेख मिलता है। इसके दो ही कारण मुख्य जान पडते है-एक तो यह है कि भारतीय कवियो की भाँति अपभ्रश के कवि राजनैतिक घटनाओ से उतने प्रभावित नही थे, जितने कि धार्मिक और सामाजिक दशा से थे। दूसरे, उनका उद्देश्य ऐतिहासिक न हो कर साहित्यिक एव धार्मिक था। अतएव सामान्य बातो को छोडकर विशेष घटनाओ तथा स्थिति का चित्रण अपभ्रश के इस साहित्य मे नही मिलना । समाज और संस्कृति आचोच्यकाल में राजपूतकालीन समाज और संस्कृति का स्पष्ट चित्रण हमे अपभ्रश के प्राय. सभी कथाकाव्यो मे मिलता है। इमलिए वणिक् पुत्र हो कर भी नायक ज्ञान-विज्ञान, तन्त्र-मन्त्रादि के साथ विभिन्न शस्त्रास्त्रो का मचालन, घोडे की सवारी तथा सग्राम मे विविध चातुरियो से बचाव आदि ३२९
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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