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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
स्वरूप भावना, और जेठ बोधि दुर्लभ भावना) के साथ मिश्रित किया है । यद्यपि सभी भावनाओं के साथ रूपक सटीक नहीं बैठा है, तथापि निर्जरा भावना और फाल्गुन मास का रूपक सुन्दर बन पडा है
फाल्गुन समय वसन्त की, तप भेद द्वादश निर्जरा। पिचकारी सजम रग है गुण, सतवीस लीजे परवरा ।। धमाल ध्यान मृग समता, शील केशर तन सजे । करम धूर उड़ाय फर गढ़, मुक्ति में अनहद वज ॥
दूसरी जगह सम्यक्त्व को श्रावण बनाकर वडी दूर तक स्पक का सागोपाग निर्वाह किया है। उसका विश्लेपण इस प्रकार किया जा सकता है
उपमेय
उपमान
श्रावण
नौर
नदियाँ
१. सम्यक्त्व २. ज्ञान
घटा ३. मिथ्यात्व
ग्रीष्म ऋतु ४ अनुभव
पवन ५ चित्त
मोर ६ गुण
दामिनी ज्ञान ८ जप-तप ६ ममता
तपन १० सम्यक्त्व श्रोता
तरुवर ११ श्रुत-ज्ञान
फल १२. मिथ्यात्वी ।
अर्क, जवासा १३. सम्यक्त्वी के गुण
लहलहाता खेत १४. मिथ्यात्वी की लालसा
उकरडी १५ देप
दुर्गन्ध १६ जिनवाणी
अमृत-वर्षा १७ मुक्ति
मार्ग भाषा को रोचक और प्रभावोत्पादक बनाने के लिए जगह-जगह लोकोक्तियो और मुहावरो का प्रयोग भी किया गया है
१. जाया सो मरसी सही, फूले ते कुमलाय ।
ऊगे सोई आय में, चिणिय सो ढल जाय ॥