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पूर्व इतिवृत्त
१७ प्रार्य वज्रसेन • आर्य वज्र स्वामी के पट्टधर वज्रसेन है । वज्रसेन का जन्म वीर स० ४९२, दीक्षा ५०१, आचायत्व ५८४,और स्वर्गवास ६२० मे,१२६ वर्ष की आयु मे हुआ । कल्पसूत्र स्थविरावली मे, इन्हे वज्र स्वामी का शिष्य बताया है, परन्तु यह वज्र स्वामी से दीक्षा मे बडे है। अत उनके शिष्य कैसे हो सकते है ? यह प्रश्न उलझ जाता है। और साथ ही इन्हे कल्पसूत्र स्थविरावली की आचार्य परपरा मे भी नही गिना है। जब कि नागोरी लोकागच्छीय हस्तलिखित पट्टावली मे इन्हे आर्य वव का पट्टधर माना है। श्रीदर्शन विजयजी भी इन्हे आर्य वज्र का उत्तराधिकारी मानते है और शिष्य भी । आपके नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति
और विद्याधर नामक प्रमुख शिष्यो से, जो परस्पर सहोदर बन्धु थे, वीर म०६०६ के आस-पास अपने स्वय के नाम पर चार कुलो का विस्तार हुआ ।'
आर्य वज्रसेन के युग में भी द्वादश वर्षीय भयकर दुष्काल पडा । कथाग्रन्थ कहते है कि इतना भयकर दुष्काल था कि निर्दोष भिक्षा न मिलने के कारण ७८४ साधु अनशन करके परलोकवासी हो गए। जिनदास श्रेष्ठी ने एक लाख स्वर्ण मुद्राओ मे एक अजलि अन्न खरीदा और दलिया मे विप मिलाकर समस्त परिवार सहित मरने जा रहा था कि आचार्य वन सेन ने शीघ्र ही सुभिक्ष होने की घोषणा करके सबकी प्राण-रक्षा की। अगले दिन अन्न से भरे हुए जहाज समुद्र तट पर आ लगे और जिनदास ने सब अन्न खरीदकर सर्वसाधारण में बिना मूल्य वितरण करना प्रारभ किया। कुछ समय पश्चात् वर्षा भी हो गई, और दुर्भिक्ष के प्राणहारी सकट से देश का उद्धार हो गया। यह दयामूर्ति श्रेष्ठी अपनी समस्त सम्पत्ति जनकल्याणार्थ अर्पण कर, अन्त में अपने नागेन्द्रचन्द्र आदि चार पुत्रो के साथ आचार्य वज्रसेन के चरणो मे दीक्षित हो गया।
___ आर्य वज्रसेन अपने युग के महान तेजस्वी देशकालज्ञ ज्योतिर्धर महापुरुप थे । आपने दुष्काल के पश्चात् शीघ्र ही श्रमण-सघ की छिन्न-छिन्न बिखरी कडियो को नए सिरे से जोडा और निर्जीव प्राय धर्म चेतना को पुन प्राणवती बनाया।
'प्रभावकचरित्र और पट्टावलियो के अनुसार नागेन्द्र कुल मे वलभी वाचनाकार नागार्जुन, पउम
चरिय के कर्ता विमल, गुर्जरेश्वर वनराज चावडा के गुरु शीलगुणसूरी, महामात्य वस्तुपाल के गुरु विजयसेन आवि प्रभावशाली आचार्य हुए है। ___ चन्द्रकुल मे उत्तराध्ययन-सूत्र के टीकाकार वादिवेताल शान्ति सूरी, नवागी वृत्तिकार अभयदेव सूरी आदि प्रमुख हैं।
निवृत्तिकुल मे आचार्य गर्गषि, सूराचार्य, सिद्धर्षि और शोलाक आवि प्रसिद्ध है। ' विद्याधर कुल मे आचार्य पादलिप्तसूरी, नागहस्ती, कालक, वृद्धवादी, सिद्धसेन दिवाकर आदि • महान आचार्यों की परपरा है। .