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पूज्य श्री रलचन्द्र जी को काव्य-साधना
भाग १, २ शीपंक से उसका थोडा अश सम्पादित कर आगरा से प्रकाशित कराया है। इसी प्रकाशित अश के आधार पर हम आलोच्य कवि की काव्य कला का मूल्याकन करने का प्रयत्न करेगे । वर्ण्य-विषय
पूज्य श्री की कविता का वर्ण्य विषय प्रधानत भक्ति और नीति रहा है। भक्ति रूप मे कवि ने अपने उपास्य के प्रति जीवात्मा की विवशता, निराश्रयता, अज्ञानता और मलिनता का वारवार उल्लेख कर आत्म-निवेदना की है तथा स्तवन किया है, उपास्य की पतित-पावनता का, भक्त-वत्सलता का, भव तारण-क्षमता का । उपास्य देवता के रूप मे कवि ने जैन-तीर्थकरो को अपनाया है। इन तीर्थकरो में आदिनाथ, शातिनाथ और नेमिनाथ कवि को विशेष प्रिय रहे है । तीर्थकरो के साथ-साथ कवि को श्रद्धा भक्ति तीर्थ की ओर भी उमडी है । तीर्थ मे उसने साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविक का कीर्तन-कथन एव व्रत नियमादि का स्तवन किया है। अन्य अन्य आत्माओ में सगर-चक्रवर्ती, धन्ना अणगार, इलायची कुवर तथा राजुल अदि सतियो को अपना काव्य-विषय बनाया है।
नीतिरूप मे कवि ने आध्यात्मिक उपदेशना दी है । इस उपदेशना में एक ओर तात्त्विक सिद्धान्तो का प्रतिपादन है, तो दूसरी ओर लोक व्यवहार की बातो का विवेचन । तात्त्विक सिद्धान्तो मे धर्म, सम्यक्व, भावना, मोक्ष, पाप, पुण्य आदि का स्वरूप वर्णन है । लोक-व्यवहार की वातो में मानव-भव की दुर्लभता, जीवन की नश्वरता. सगति की प्रभावना, क्रियाकाण्ड की निरर्थकता आदि का वथन है । वयं विषय को रेखा-चित्र द्वारा इस प्रकार दर्शाया जा सकता है
वर्ण्य-विपय
(१) भक्ति
(२) नीति
---- - (क) तीर्थकर (ख) तीर्थ (ग) अन्य महापुरुप (क) तात्विक (ख) लोक-व्यवहार (१) आदिनाथ (१) साधु (१) सगर-चक्रवर्ती (२) शातिनाथ (२) साध्वी (२) धन्ना अणगार (३) नेमिनाथ (३) श्रावक (३) इलायची कुंवर
(४) श्राविका (४) राजुल आदि सतियाँ ' प्रकाशित कविता संग्रह के अतिरिक्त मुनि श्रीचन्दजी ने पूज्य रत्नचन्दजी द्वारा रचित निम्नलिखित प्रन्थो का और उल्लेख किया है
मोक्षमार्गप्रकाश, प्रश्नोत्तर माला, बडी नवतत्त्व, बडा गुणठाणाद्वार, दिगम्बर मतचर्चा, तेरह पथ मत चर्चा, चमत्कार चिन्तामणि जोतिष, तत्त्वानुबोध आदि ।