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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्य
अधिकतम एव उत्कृष्टतम मगीत के साथ सम्भव हो सकता है। जो सामान्य साधक एक ही कला में अधिक प्रवीण है, वे एक कला की प्रधानता से मन्तीप कर सकते है। काव्य और मगीत के सयोग में दोनो एक दूसरे के सौन्दर्य का सवर्धन करते हैं। इसे हम तत्रो की भाषा से 'साम्य' और व्यवहार मे परस्पर सम्भावन कह सकते हैं
____ साहित्य और कला के व्यवहार में प्राय उत्कृष्ट क्षितिजो पर काव्य और संगीत का सगम कठिन होता है। इसका कारण उन कलाओ की सीमा नही, वरन् कलाकारों की मामर्थ्य की सीमा तथा इतिहास में इन कलाओ के विशेप रूपो का आग्रह है। इन कलाओ के सयुक्त और पृथक्-पृथक् रूप तथा भिन्न-भिन्न परिमाणी में इनका सयोग भी कलाओ के सम्पूर्ण मौन्दर्य को विविधता के द्वारा बढाते है, अत शुद्ध और संयुक्त स्पो में तथा मयोग के मभी अनुपातो में ये कलाएं स्पृहणीय है। सयोग और पृथक्करण दोनो का ही आग्रह अनुचित है । साहित्य और कला के इतिहास तथा व्यवहार मे उमके अनुपातो में इन कलाओ के मयोग मिलते है । टनकी अनुपातो की विविधता जीवन के कलात्मक सौन्दर्य को बढाती है । दृश्य स्प की कलाओ में यह सगम अधिक सम्भव एव प्रचलित नही हो सका है । काव्य और संगीत का सगम कला का सौभाग्य है। उसका अखड रहना सास्कृतिक दृष्टि से मगलमय है।
साधना की दृष्टि व्यक्तिगत होते हुए भी काव्य और संगीत की कलाएं व्यवहार की दृष्टि से सामाजिक है । शब्द का स्वरूप ही सामाजिक है, मम्प्रेपण की आवश्यकता के कारण ही मनुष्य के इतिहास मे गन्द का विकास हुआ है। कवि और गायक दोनो ही ममाज में अपनी कला के सत्कार से प्रसन्न होते है । सामाजिक होने के कारण माधना और रचना के साथ-साथ आस्वादन की अपेक्षाओ ने भी इन कलाओ के रूप को प्रभावित किया है। संगीत और काव्य दोनो का कुछ सहज वोध सामान्यजनो में भी होता है। किन्तु दोनों का अधिक विकास साधना की अपेक्षा करता है। काव्य के अधिक उत्कृष्ट भावो के ग्रहण की योग्यता तो शास्त्री के सस्कारो तथा जीवन के अनुभवो से भी प्राप्त होती है, किन्तु सगीत के उत्कृष्ट रूपो के ग्रहण की क्षमता साधना से ही प्राप्त हो सकती है । सगीत में रचना और आस्वादन दोनो साधना मे प्राप्त होते है । काव्य के सम्बन्ध में ऐसा नही है। इसीलिए काव्य मे अल्प परिमाण मे ही सगीत का सगम हो सका है। सगीत के उत्कृष्ट स्प अल्प शब्द के आधार में विपुल स्वर योजना से ही रचे जाते हैं। सूर के काव्य के समान उत्कृष्ट काव्य और उत्कृष्ट सगीत के सगम की रचना और उसका आस्वादन दोनो ही दुर्लभ है। सगीत के साधारण स्पो का अल्प परिमाण मे ही साधारण जन आस्वादन कर सकते है। मगीत के उत्कृष्ट रूपी का आस्वादन उनके लिए कठिन है। शास्त्रीय संगीत की अलोक-प्रियता का ही कारण है । काव्य के भावो के आस्वादन की अधिक क्षमता साधारण जनो में होती है। अत सगीत की अपेक्षा काव्य का आस्वादन अधिक लोकप्रिय रहा है । साधारण-जनो मे सगीत के आस्वादन को अल्प क्षमता होती है । अत सगीत का सम्पुट काव्य को अधिक ग्राह्य वनाता रहा है । सगीत रहित काव्य का भावी सम्मान काव्य रहित वाद्य सगीत के सम्मान से भी अधिक सदिग्ध है ।
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