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सत्य शिवं. सुन्दर शब्द की मारफत यदि हम कुछ नही लेते है और हमारे पास देने को भी कुछ नहीं है, तो उस पद के प्रयोग से बचा जा सकता है । ऐसी अवस्था मे बचना ही लाभकारी है। • महावाक्यो मे गुण होता है कि वे कभी अर्थ से खाली नहीं होते । कोई विद्वान् उनके पूरे अर्थ को खीच निकालकर उन शब्दो को खोखला नहीं बना सकता। उन वाक्यो मे आत्मानुभव की अटूट पूंजी भरी रहती है। जितना चाहो, उतना उनसे लिए जाओ, फिर भी मानो अर्थ उनमे लबालब भरा ही रहता है। असल मे वहाँ अर्थ उतना नही, जितना भाव होता है । वह भाव वहाँ इसलिए अक्षय है कि उसका सीधे आदि स्रोत से सम्वन्ध है। इसीलिए ऐसे वाक्यो मे जब कि यह खूबी है कि वे पडित के लिए भी दुष्प्राप्य हो, तब उनमे यह भी खूबी होती है कि वे अपडित के लिए भी, अपने मुताबिक, सुलभ बने रहे।
___ भावार्थ यह कि ऐसे महापदो का सार अपने सामर्थ्य जितना ही हम पा सकते है, या दे सकते है। यहाँ जो "सत्य शिव सुन्दर" इस पद के विवेचन का प्रयास है, उसको व्यक्तिगत आस्था-बुद्धि के परिणाम का द्योतक मानना चाहिए।
सत्य, शिव, सुन्दर-ये तीनो एक बजन के शब्द नहीं है। उनमे क्रम है, और अन्तर है।
सत्य-तत्व का उस शब्द से कोई स्वरूप सामने नहीं आता। सत्य सत्य है । कह दो, सत्य ईश्वर है। यह एक ही बात हुई । पर वह कुछ भी और नहीं है । वह निर्गुण है। वह सर्व-रूप है । सज्ञा भी है, भाव भी है।
सत् का भाव सत्य है। जो है, वह सत्य के कारण है, उसके लिए है। इस दृष्टि से असत्य की कुछ हस्ती ही नहीं। वह निरी मानव-कल्पना है । असत्, यानी जो नही है। जो नही है, उसके लिए यह "असत्" शब्द भी अधिक है। इसलिए असत्य शब्द मे निरा मनुष्य का आग्रह ही है, उसमे चरितार्थ कुछ भी नहीं है। आदमी ने काम चलाने के लिए वह शब्द खडा कर लिया है। यह कोरी अयथार्थता है।
इस तरह "सत्यता" शब्द भी यथार्थ नहीं है । वह शब्द चल पड़ा तो है, पर केवल इस बात को सिद्ध करता है कि मानव-भापा अपूर्ण है।
जो है, वह सत् । जो उसको धारण कर रहा है, वह सत्य ।
अब "शिव" और "सुन्दर" शब्दो की स्थिति ऐसी नही है । शिव गुण है, सुन्दर रूप है । ये दोनो सम्पूर्णतया मानवानुमान अथवा सवेदन द्वारा ग्राह्य तत्व है। ये रूप-गुणातीत नहीं है, रूप गुणात्मक है। ये यदि सज्ञा है, तो उनके भाव जुदा है,-शिव का शिवता और सुन्दर का सुन्दरता। और जब वे स्वयं मे भाव है तब उन्हे किसी अन्य तत्व की अपेक्षा है-जैसे 'यह शिव है"-"वह सुन्दर" है । "यह" या "वह" उनके होने के लिए जरूरी है । उनकी स्वतत्र सत्ता नही है।
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