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________________ भारतीय संस्कृति में सगीत-कला मतानुसार "प्रत्येक मुगल शहजादे से यह आशा की जाती थी, कि वह सगीत मे प्रवीण हो।" बाबर संगीत का अत्यधिक प्रेमी था। हुमायू के दरवार मे प्रति सोमवार व बुधवार को सगीतज्ञ एकत्रित होते थे। १५३५ ई० मे जब उसने माण्डू पर विजय पताका फहराई, तब "बच्चू" नामक गायक पर इतना मुग्ध हुआ, कि उसे दरबार में विशिष्ट स्थान दिया। सूरी वश अफगान सुलतान और आदिलशाह सूरी भी सगीत के प्रेमी थे। “अबुल फजल" के अनुसार अकबर के दरवार मे विभिन्न देशो के छत्तीस सगीताचार्य रहते थे, उनमे तानसेन प्रमुख था। जहागीर और शाहजहा ने भी सगीतज्ञो को आश्रय दिया था। औरगजेब संगीत का विरोधी था। उसने दिल्ली मे सगीत का जनाजा भी निकाला था । रोशन अस्तर मोहम्मदशाह ने पुन सगीत को बढावा दिया। उसी युग मे गौरी ने सगीत मे "ठप्पा" उपस्थित किया । बहादुरगाह "जफर" स्वय अच्छे सगीतज्ञ थे। ई० सन् १७७९-१००४ मे जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह के दरबार में विशिष्ट सगीतज्ञो का सम्मेलन भी हुआ। और "सगीत-सागर" नामक पुस्तक भी लिखी गई। उसके पश्चात् राग-रागिणियो का सरलता से वर्णन किया गया। इस प्रकार मध्यकाल में संगीत की उन्नति हुई, पर मुख्यत मनोरजन के रूप मे ही। यह ठीक है कि उस युग में जैन सत कवियो ने और वैदिक भक्त कवियो ने जो सगीत सिरजा, वह आध्यात्मिक रस से आप्लावित है । उनका तेजस्वी स्वर भौगोलिक सीमाओ को लाघकर सुदूर प्रान्तो मे भी गूंजा और जन-जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया और वह लोकप्रिय रहा। प्राज का सगीत वर्तमान भारतीय संगीत को प्राचीन सगीत का प्रतिनिधि नहीं कह सकते और न वह उसका परिष्कृत और विकसित रूप ही है। आज का कलाकार उसमे विजली की तडप, सर्चलाइट की चकाचौध और सर्कस की कलाबाजी दिखाने मे तुला हुआ है, और उसी मे सगीत कला की सार्थकता अनुभव कर रहा है। आज सिनेमा के गीतो का प्रचार प्रतिदिन वढ रहा है। उसका मुख्य उद्देश्य जनता का मनोरजन करना है, पर मनोरजन का स्तर दिन प्रतिदिन हीन व हीनतर होता जा रहा है । सिनेमा सगीत के इस तामसी प्रचार से आत्म-कल्याण की अमर-प्रेरणा प्रदान करने की अपेक्षा जिन विनाशकारी दुर्भावनाओ का सृजन किया है, वह किस विचार-शील विचारक से छिपा है । सिनेमा सगीत केवल दो पुरुषार्थों का प्रतिनिधित्व कर रहा है । विपय-वर्धन विचारो का प्राधान्य गीतो मे इतना बढ़ गया है, कि उसमे नैतिकचेतना, जीवन की गहनतम समस्याओ का समाधान सद्भावना-सहिष्णुता और सदाचार का अभाव हो गया है। वस्तुत ये हलके गीत भारतीय संस्कृति और सभ्यता के लिए कलक है । २६९
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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