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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ जैनागमों में संगीत आगम, जैन-दर्शन के विचारो का मूल-स्रोत है। आगमो मे अनेक स्थलो पर विविध दृष्टियो से गीतो का वर्णन उपलब्ध होता है । कही कला की दृष्टि से, कही विपय-प्रतिपादन की दृष्टि से और कही विरक्ति के विवेचन के रूप मे । "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति", "प्रश्न-व्याकरण", "जीवाभिगम", ज्ञाताधर्म कथा, "समवायाङ्ग" वृहत्कल्प, स्थानाङ्ग और अनुयोगद्वार आदि आगमो मे "गीत" शब्द का प्रयोग हुआ है । और कही कही तो प्रस्तुत शब्द पर विस्तार से विवेचन भी है। भगवान् श्री ऋषभदेव ने प्रजा के हित के लिए, अभ्युदय के लिए, जन-जीवन मे, सुख और शान्ति का सचार करने के लिए, कलाओ का उपदेश प्रदान किया है।' उन कलाओ मे बहत्तर कलाएं पुरुप के लिए थी। और चौसठ कलाएं महिलाओ के लिए थी। उन वहत्तर कलाओ मे गीत पचम कला है और चौसठ कलाओ मे गीत ग्यारहवी कला है। जिसका उस युग मे स्त्री और पुरुप दोनो के लिए परिज्ञान करना आवश्यक माना जाता था। ज्ञाताधर्मकथा मे मेघकुमार का वर्णन करते हुए उसकी विशेषता का वर्णन किया है, कि वह गीत, रति, गाधर्व और नाट्य कलाओ मे कुशल था।' स्थानाङ्ग मे काव्य के चार प्रकार बताए है । उसमे सगीत भी काव्य का एक भेद है। गीत के प्रकार समवायाङ्ग मे गीत-कला का उल्लेख करते हुए टीकाकार ने गीतो के तीन भेद किए है। शिष्य जिज्ञासा करता है-"भगवन्, स्वर कितने है ? गीत का प्रादुर्भाव कहाँ से होता है ? कहाँ उछ्वास ग्रहण किए जाते है, और कितने गीत के प्रकार होते है ? ' बावतरि कलाओ, चउसट्ठी महिलागुणे सिप्पसयं कम्माण तिन्नि वि पयाहिआए उवदिसइ ' ---कल्पसूत्र सुबोषिका टोका सूत्र १११. २ लेहाइमामो गणि अप्पहाणामो सउणस अपज्ज बसाणामओ बावतरि कलाओ उपदिवेश । -जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वक्षस्कार समवायांग ७२ ' गोइरई गधव्व नट्ट कुसले -जाता. अ० आगमो० पृ० ३८ ५ चउन्विहे कन्वे प० त० गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेये-स्थानाग स० ३६९ आगामो० पू० २८७ गीत-कला, सा च निबन्धन-मार्गश्छलिमार्ग-भिन्नमार्ग-भेदात्रिषा। -समवायाड ७२
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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