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भारतीय संस्कृति में सगीत-कला
संगीत क्या है?
सगीत हृदय की भापा है, और वह अनेक राग-रागिणियो के माध्यम से गाया जाता है । संगीत का मूल आधार राग है। राग की परिभाषा प्राय सभी मूर्धन्य मनीपियो ने एक-सी की है "जो ध्वनि विशेष स्वर-वर्ण से विभूषित हो, जनचित्त को अनुरजन करने वाला हो, वह राग है।
गीत क्या है ? जिज्ञासु के प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य ने कहा-"आकर्षण स्वर सन्दर्भ का नाम ही गीत है।"
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की टीका में आचार्य मलयगिरि ने "पद स्वर-तालावधनात्मक गान्धर्व को गीत कहा है।"
समवायाड-सूत्र की टीका मे आचार्य अभयदेव ने गान्धर्व कला गान-विज्ञान को गीत कहा है।
गीत शब्द के पूर्व सम् उपसर्ग लगजाने से सगीत शब्द बना है। जिसका अर्थ सम्यक् प्रकार से लय, ताल और स्वर आदि के नियमो के अनुसार पद्य का गाना है।
संगीत का प्रारम्भ कब से
सगीत श्रवण करना और गाना, मानव जीवन की सहज जिज्ञासा है। सगीत का प्रारम्भ कब से हुआ, इस विषय मे कुछ कह सकना सरल न होगा । किन्तु यह स्पष्ट है, कि सगीत का इतिहास बहुत प्राचीन है । वह मानव जीवन का प्रारम्भिक साथी है।
__ भारतीय साहित्य का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट ज्ञात होता है, कि भारतीय साहित्य मे अन्य विषयो की चर्चा के साथ सगीत का भी विशद विश्लेषण किया गया है । आगम, त्रिपिटक, वेद और उपनिषदो मे सूत्र-रूप मे खासी अच्छी चर्चा है । परवर्ती विज्ञो ने फिर उसका अच्छा विकास किया है, यहाँ पर सभी की चर्चा करना तो सम्भव नही, पर कुछ विचार अवश्य किया जाएगा। जिससे यह ज्ञात हो सके, कि गीतो के बीज कहाँ-कहाँ पर बिखरे पडे हैं।
१ "गीत पदस्वर तालावधानात्मक गान्धर्वमिति भरतादि शास्त्र-वचनात ।"
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति २ गीत-गान्धर्व-कला-गान-विज्ञान मित्यर्थ
-समवायाङ्ग सूत्र ७२
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