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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
जैन साहित्य के अध्येता यह अच्छी तरह जानते है, कि "कपिल मुनि" ने उत्तराध्ययन सूत्र के आठवे अध्ययन को ध्रुवपद मे गाकर पाँच सौ तस्करों से स्तेय कृत्य छुडवाकर जैनेन्द्री -दीक्षा प्रदान की थी ।
भारतीय इतिहास विज्ञो से यह बात छिपी हुई नही है, कि उन भक्त-प्रवर कवियो ने और प्रबुद्ध प्रतिभा सम्पन्न सन्तो ने सगीत से जन-गण-मन मे से उदासीनता और निराशा को हटाकर, आशा और उल्लास का सचार किया । भोग की भयकर गदगी को हटाकर भक्ति का सुगन्धित सरसब्ज बाग लगाया व दार्शनिक जैसे गहन गम्भीर विचारो को और धार्मिक जैसी भव्य भावनाओ को गगन चुम्बी राज प्रासादो से लेकर गरीबो की झोपडियो मे भी पहुँचाने का प्रयत्न किया । वस्तुत सगीत एक ऐसा सुनहरा धागा है, जिसने सारे देश को एकता के सूत्र मे बाँधा है ।
आजकल कुछ पाश्चात्य विचारको ने सगीत का नवीन प्रयोग प्रारम्भ किया है । सगीत के द्वारा उन्होने अनेक असाध्य मानसिक व शारीरिक व्याधियो को ठीक किया है, उनका यह दृढ मन्तव्य है कि " भविष्य मे सगीत - चिकित्सा मानव समाज के लिए वरदान सिद्ध होगी ।"
नाट्य-शास्त्र के रचयिता आचार्य भरत ने सगीत का महत्त्व प्रतिपादन करते हुए कहा है"सगीत ससार के सभी प्राणियो के दुख-शोक का नाशक है, और आपत्ति काल मे भी संगीत सुख देने वाला है ।" और भर्तृहरि ने सगीत कला से अनभिज्ञ व्यक्ति को पशु की सार्थक सज्ञा प्रदान की है । 3 और महात्मा गाधी ने कहा, "सगीत के बिना तो सारी शिक्षा ही अधूरी लगती है । अत चौदह विद्याओ मे संगीत को एक प्रमुख विद्या माना है ।
यह कहना अतिशयोक्ति-पूर्ण नही होगा, कि सगीत में जितनी मधुरता, सरसता व सरलता है, उतनी अन्य कलाओ मे नही | माधुर्य ही सगीत - कला का प्राण है, जो जादू की तरह अपना प्रत्यक्ष प्रभाव दिखलाता है ।
भारत मे भक्ति ने संगीत को और संगीत ने भक्ति को बहुत आगे बढाया है ।
* सर्वेषामेव लोकाना, दुःख-शोक-विनाशनम् ।
यस्मात्सदृश्यते गीत सुखद व्यसनेष्वपि ॥
3 "साहित्य-संगीत-कला-विहीन.
साक्षात् पशुः पुच्छ - विषाण-हीनः ॥
४ गाधी जी की सूक्तिया
- आचार्य भरत
-नीति-शतक
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महात्मा गाधी