SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संस्कृति में संगीत-कला ___ देवेन्द्रमुनि शास्त्री साहित्यरत्न ++++++++++++++++++++++-+-+-+-+-+-+-+-+++ संगीत : एक कला __सगीत एक क्ला है, अपने आप मे इतनी परिपूर्ण और चित्ताकर्षक, कि गुलाबी बचपन से लेकर जीवन की सुनहरी सन्ध्या तक सभी के दिल को लुभा लेती है, मन को मोह लेती है और हृदय को हर लेती है। वह केवल विशिष्ट-शिष्ट विज्ञो को ही प्रिय नही, अपितु निरक्षर, स्त्री-पुरुषो, बालक वृद्ध, युवक, धनवान-निर्धन, किसान और विद्वान सभी को प्रिय है । सभी का समान खाद्य है। सगीत का महत्व इतना ही नही, स्वर्गीय संगीत की सुमधुर स्वर-लहरी को श्रवण कर मानव तो क्या, पशु-पक्षी भी विमुग्ध हो जाते है और अपने क्रूर हिंसक स्वभाव को विस्मृत करके अहिंसक बन जाते है। भारतीय संस्कृति के एक महान् आचार्य जो सगीत की मोहिनी से भली भांति परिचित है, उन्होंने क्या ही सुन्दर कहा है "नृणावोऽपि पशु भूखों, वन-वृद्धोऽपि यः पशुः । सोऽपि गीताद्वश याति, मृगो भूपेषु का कथा ॥ २६३
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy