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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
२ जन साधारण अपने पुत्र या पुत्री के विवाह योग्य होने पर योग्य सबन्ध की खोज के लिए धात्री तथा पुरोहित को भेज देते । योग्य संवन्ध मिलने पर विवाह का निश्चय तथा आयोजन होता ।
वर्तमान की दृष्टि से उक्त दोनो ही प्रकार अव्यवहार्य तथा अपरिपूर्ण है । इसके विपरीत आज के सबसे बड़े पुरोहित और धात्री पत्र-पत्रिकाएँ हैं । पत्र पत्रिकामो मे आवश्यकता प्रकाशित कर देने से घर बैठे पुरोहित का कार्य समय, शक्ति और घन के अपव्यय के बिना ही हो जाता है । यदि स्वयवर अर्थात् युवक या कन्या को स्वत संवन्ध करना हो तो भी पत्र-पत्रिकाओ मे आवश्यकता प्रकाशित करना सर्वाविक कार्यकर है।
पत्र-पत्रिकामो की इतनी उपयोगिता होने पर भी वर्तमान में उनसे पर्याप्त लाभ नहीं लिया जा रहा है । कुछ थोडे से उच्च शिक्षा प्राप्त लोगो को छोडकर प्राय सभी लोग पत्र-पत्रिकामो मे वैवाहिक आवश्यकता प्रकाशित करना अपना अपमान-सा समझते हैं। यदि सभी लोग पूरे विवरण के साथ आवश्यकताएं प्रकाशित कराने लगें तो वर या कन्या की खोज करने में कठिनाई न रहे । प्रत्येक विवेकशील व्यक्ति का इस ओर ध्यान देना आवश्यक है।
आजकल विवाह का निश्चय करने के लिए मगनी या तिलक का रिवाज है । आगमो में इस तरह के कोई उल्लेख नहीं मिलते । आज की तरह उन दिनो दूसरो के धन से धनी होने की क्षुद्र प्रवृत्ति नही थी । मगनी या तिलक ने वर्तमान में विवाह को एक समस्या बना दिया है। पाणिग्रहण के पूर्व ही कन्या के माता पिता से हजारो रुपये या हजारो रुपयो का सामान मगनी या तिलक के रूप में लेना आज आम रिवाज सा होगया है। सामाजिक दृष्टि में यह एक निन्दित एव घातक प्रवृत्ति है, जिसे सर्वथा समाप्त होना ही चाहिए।
पाणिग्रहण का निश्चय करने के लिए ममाज के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समक्ष केवल एक श्रीफल का आदान-प्रदान होना पर्याप्त है।
बहुत समय पहले से भी विवाह का निश्चय नही करना चाहिए। इसमे होने वाली अनेक बुराइयो से लोग परिचित हैं । अतएव सर्वाधिक उचित तो यही है कि निश्चय और पाणिग्रहण दोनो एक साथ हो। फिर भी यदि पहले निश्चय करना ही हो तो भी दो माह से अधिक पहले निश्चय नही करना चाहिए।
विवाह के मुहूर्त के सबन्ध मे आगमो मे यह कथन आता है कि शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ नक्षत्र शुभ मुहूर्त, शुभ योग मे पाणिग्रहण कराया।' नि सन्देह कोई भी मागलिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है, फिर विवाह तो एक ऐसा महत्वपूर्ण और मागलिक कार्य है कि सपूर्ण जीवन को
'सोहणसि विहि-करण-नक्खत्तमुत्तसि जोग"जाताधर्म, स्कन्ध १ मध्य० १ भगवती, शतक १११ उद्देश ११
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