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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-प्रन्थ
प्राचीन काल में ये दोनो ही प्रकार के बन्धन नहीं थे। जैन-दृष्टि से होना भी नहीं चाहिए । इन वन्धनो ने वर्तमान मे विवाह को समाज के समक्ष एक समस्या बना दिया है, इसलिए इन पर कुछ विशेष विचार करने की आवश्यकता है
(क) निकट के सबन्ध आगमकाल में अपने परिवार के अर्थात् भाई-वहिन, पिता-पुत्री आदि के अतिरिक्त अन्य सभी निकट के सम्बन्धियो मे विवाह हो सकता था । उदाहरण के लिए१ उग्रसेन की कन्या सत्यभामा श्रीकृष्ण को व्याही थी। उग्रसेन तथा श्रीकृष्ण दोनो
सगोत्री थे ।'
२. भोजराज और अन्धकवृष्णि दोनो सहोदर भाई थे । भोज की पौत्री राजीमती तथा अधक
के पौत्र नेमि का विवाह रचा गया था। ३ भूआ (कुन्ती) के पुत्र अर्जुन को श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ब्याही गई थी। ४ रुक्मइये राजा ने अपनी कन्या वैदर्भी अपने भानजे रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्नकुमार को
व्याही थी। ५. चारुदन का विवाह अपने मामा की कन्या से हुआ था। ६. महावीर की पुत्री दर्शना उनके भानजे जामाली को व्याही थी।
इसी तरह के और भी अनेक उदाहरण है । इनसे स्पष्ट है कि निकट के संबन्धियो मे विवाह होते थे । सम्भवतया मामा के लडके या लड़की का सवन्ध सर्वोत्तम माना जाता था। इसका मुख्य कारण यह था कि उक्त दोनो परिवार निकट संवन्धी होने के कारण एक ओर परस्पर के आचार, विचार तथा व्यवहार से पूर्णतया परिचित होते थे दूसरी ओर सवन्धी होने के कारण पूर्व स्नेह भी होता था।
वर्तमान मे तो मामा के सबन्ध को खास तौर पर बचाया जाता है । कही-कही सीमाएं टूट रही है, किन्तु विवेक के साथ नहीं, बल्कि स्वार्थों के कारण । वास्तव में यह दायरा विवेकपूर्वक समाप्त होना चाहिए । सामाजिक अभ्युत्थान एव सुव्यवस्था की दृष्टि से ऐसे सवन्ध उचिततम है।
'हरिवंशपुराण २ उत्तराध्वयन, अध्य० २२
ढाल सागर । अन्तकृत ५ हरिवशपुराण १ कल्पसूत्र, पञ्चमक्षण
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