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________________ जैन-सस्कृति और विवाह १ उम्मुक्क-बालभावे २ णवगसुत्त-पडिबोहिए' ३ अल भोगसमत्ये अर्थात् जिसका बालभाव समाप्त हो गया हो, जिसके शारीरिक नव अग जागृत हो गए हो तथा जो भोग करने में समर्थ हो, ऐसे व्यक्ति की आयु विवाह योग्य है। मध्ययुग मे बाल विवाह की प्रथा चल पडी थी, पर समाज ने उससे होने वाली कठिनाइयो और बुराइयो को महसूस किया । आज बाल विवाह सामाजिक दृष्टि से अनुपयोगी ही नही, शासन की दृष्टि से अवैध भी है । इसलिए विवाह की उचित आयु वही मानना चाहिए जब युवक और कन्या दोनो ही अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण रूप से समझने लगे । विवाह की आयु को वर्षों की मर्यादा मे बांधना उचित नही, क्योकि देश, काल और परिस्थितियो के अनुसार आयु सम्बन्धी सीमाओ मे परिवर्तन होता रहता है। जैन आगमो मे वर और कन्या के गुणो का जो वर्णन आता है यदि उसी के अनुसार वर और कन्या खोजे जाएं, तब तो शायद न किसी लड़के का विवाह हो न लडकी का । आगम कालीन युवक बहत्तर कलाओ का पण्डित, अट्ठारह देशो की भापाओ का विशेषज्ञ, गीत और नाट्य मे कुशल, अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध, तथा बाहुयुद्ध मे निष्णात, महान साहसिक तथा निर्भीक होता था। कन्या के गुण के विषय मे कहा गया है कि कन्या वर के अनुरूप वय वाली, बर के समान ही लावण्य, रूप और यौवन वाली तथा समान कुल मे उत्पन्न होने वाली होती थी। प्राचीन काल मे विवाह का क्षेत्र इतना सकुचित नही था, जितना आज हो गया है । आज विवाह के लिए दोहरे बन्धन है १ निकट के सबधियो मे विवाह नहीं हो सकता। २. अपनी जाति या दायरे के बाहर विवाह नहीं हो सकता। ' भगवती श० ११, उद्देश. ११ २ जाताधर्म, स्कन्ध १, अध्य०१ ३ जाताधर्म, स्कध १, भगवती श० ११, उद्देश्य० ११, " वावत्तरिकलाडिए अट्ठारसविहिप्पगारदेशीभासाविसारए गथव्वणट्टकुसले हयजोहो गयजोही रह जोही बाहुनोही साहसिए" "वियालचाली • • जाताधर्म, स्कन्ध १ अध्य०१ ५ सरिसयाणं सरिसब्वयाण सरिसतयाण सरिसलावण्ण-रूब-जोवण-गुणोववेयाण सरिसएहितो । भगवती सूत्र शत. ११ उद्दे० ११ २८५
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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