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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्य स्वर्गीय मुनि श्री रलचन्द्र जी महाराज जैसे समय सत की स्मृति के रूप में, जो यह ग्रन्थ बन रहा है, उसे अगर जीवित स्मृति-प्रथ बनाना है, तो स्थानकवासी परम्परा के कर्णधारो को अविलम्ब उपर्युक्त कार्यक्रम मे जुट जाना चाहिए। युग उनके अनुकूल है, नई पोटी उन्हें सहयोग देने को तैयार है। स्थानकवासी जैन परम्परा उनके मार्ग मे रोडा अटकाने वाली नही, जस्रत है, साहसपूर्वक विवेक का काग लेकर कूद पड़ने की।
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