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हिन्दू समाज मे जाति-भेद
जैसा कि मेने ऊपर बताया, मानवीय दृष्टिकोण के बिना, न तो अछूनो की समस्या को समझा जा सकता है, और न उसका समाधान हो सकता है । छुटपुट नुमायशी राहत देने से इस अभिशाप को नही मिटाया जा सकता । मेरा निश्चित मत है कि यदि हमे इनको शेप सारे समाज से एकात्म करना है, तो हमे म्युनिसिपैलिटियो से प्रारम्भ करना होगा, जहाँ कि सफाई मजदूर काफी मख्या मे काम करते हैं ।
नगरो की सफाई व्यवस्था के दो पक्ष है। एक पक्ष हे-गन्दगी फैलाने वालो का जो कि अपने प्रतिनिधि म्यूनिसिपल मेम्बरो के रूप मे भेजते है । दूसरा पक्ष है--गन्दगी साफ करने वालो का, जो कि पढी दर पीढी इसी काम को करते आ रहे है और शोपित-पक्ष है। दोनो पक्षो के अस्तित्व को समझ लेने के बाद हमे समाधान तक पहुंचना आसान हो जाता है। एक पक्ष काम कराता है दूसरा पक्ष काम करता है । अत दोनो पक्षों के प्रतिनिधि समान संख्या में चुने जाएं। जितने सदस्य सफाई कराने वालो के प्रतिनिधि के रूप में चुने जाते है, उतने ही सदस्य मजदूरो मे से भी उनके प्रतिनिधि के रूप मे चुने जाएँ। फिर दोनो पक्ष इस बात का फैसला करे कि मजदूर को पारिश्रमिक कितना मिले सुविधाएं क्या मिले और अच्छी से अच्छी सफाई किस तरह हो।
आज की व्यवस्था मे मजदूर को न्याय मिलना इमलिए सम्भव नहीं है, क्योंकि प्रबन्ध-व्यवस्था मे उसका कोई हाथ नही है। उसे न्याय तभी मिल सकता है, जब कि वह स्वय प्रबन्ध की व्यवस्था मे बराबर का भागीदार हो।
आज के शोपित को न्याय्यत बरावर की भागीदारी देने पर शहर के मलके निकास की व्यवस्था अन्तर्वाहिनी नालियो द्वारा की जा सकती है । हर घर में फ्लश के शौचागार की व्यवस्था की जा सकती है। दूसरे सभ्य देशो की भाति सफाई के काम में से गन्दगी और गर्दा निकाली जा सकती है। और उस दिन की कल्पना की जा सकती है, जब कि देश मे जाति-पांति विहीन स्वस्थ ममाज का विकास हो सकेगा। चाहे आज यह सुनने मे अजीव लगे लेकिन राष्ट्रीयता का चरम लक्ष्य तो एक ऐसे वर्गहीन समाज की स्थापना है, जो रोटी बेटी के व्यवहार से एक-दूमरे से बँधा हुआ हो । जब तक निम्नतम उठकर उच्चतम के समकक्ष नही आता, तब तक ऊपर से लाख एकता-एकता चिल्लाने से भी एकता नही आ सकती।
वस्तुत अछूत मेहतर की समस्या एक इजीनियरिंग समस्या है। हर घर मे फ्लश की टट्टी लगाना, और उसको जमीन के अन्दर वहने वाली उन नालियो से जोड देना, जो कि अन्दर ही अन्दर मल को शहर से दूर ले जाकर खेतो मे डाल दे-आज सम्भव है । एक नगर के पीछे कुछ लाख का खर्चा है, जिसके बाद कि सफाई एक आसान और अगहित चीज बन जाएगी। और छूत की बीमारियाँ, महामारियाँ, सडन और घुटन एक अतीत की चीज हो जाएगी। इस काम में लगने वाला आवश्यक पैसा, राज्य सरकारे या केन्द्रीय सरकार म्युनिसिपैलिटियो को ऋण के रूप मे दे सकती है, जिसको कि मकानदारो से वार्षिक पच्चीस-पचास किश्तो के रूप मे अथवा विशेष टैक्स के रूप मे बसूल किया जा सकता है । हजारो साल पहले शुरू हुई बुराई दूर की जा सकती है, जाति-पॉति हटाकर राष्ट्रीय एकता लाई जा सकती है, नये युग का सूत्रपात किया जा नकता है, बशर्ते कि हममे उसके लिए आवश्यक साहस और सकल्प हो, और सबसे ऊपर एक पर-दु ख कातर स्पन्दनशील हृदय हो।
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