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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ इस समान मूलकता से मेरा प्रयोजन इस अन्याय को कम करके दिखाने का नही है, जो हम अछूतो पर करते रहे है । वल्कि अपनो पर किए गए अन्याय से उसकी अपराध गुरुता और हृदय हीनता और भी अधिक बढ़ जाती है। न केवल हमने अपने ही एक अग को गन्दे काम में लगाया, बल्कि उसे हमेशा उसी मे लगाए रखने का पड्यत्र भी किया । गन्दगी फैलाकर भी हम ऊँचे रहे आए और हमारी गन्दगी की सफाई जैसा दुष्कर काम करने वाला नीचा हो गया । अपने उपकारक को हमने नीचा दर्जा दिया-ग्राम से बाहर वास दिया-बाने को उच्छिष्ट दिया। उसके उपकार के बदले मे हमने उससे शास्त्र और विद्या पढने का अधिकार छीन लिया और उत्सव, रागरग, देवदर्शन आदि सामाजिक अवसरो पर उसका भाग लेना निपिद्ध कर दिया । यही नहीं, पीढी दर पीढी वह इमी काम में लगा रहे और हमे सस्ते मजदूर उपलब्ध होते रहे, इसलिए हमने उसके परिश्रम का इतना कम मुआवजा दिया कि वह आर्थिक रूप से चिर पगु होकर हमारा मोहताज होकर रह गया । और फिर भी हमाग दावा यह कि हम सभ्य है। हम तो घोर असभ्य है। सवर्ण भी और अछूत भी । सवर्ण इसलिए कि उन्होने अन्याय किया, और अछूत इसलिए कि उन्होंने इसको चुप रहकर बर्दाश्त किया। समानता और विज्ञान के आज के युग मे भी, जब कि मल को जनग्राम से बाहर, दूर खेतो मे ले जाना सिर्फ एक यात्रिक समस्या (Engineering problem) है, हम सफाई करने वाले वर्ग को उसी कीचड मे डुबो रखकर अपनी सनातन सभ्यता का परिचय दे रहे है । फुटकर परिवारो की गन्दगी मे लिथडे मेहतरो को, जब म्यूनिसिपैलिटी आदि सस्थाएं भी नौकर रखती हैं, तो किसी सभ्यता का परिचय नहीं देती। उसी असभ्यता भरी आदिम और पुरातन दुर्व्यवस्था को सरकारी स्तर पर भी मान्यता मिल गयी है। वस्तुत अछूतो के कप्ट को, उनमे से एक हुए बिना या उनसे एकात्म हुए बिना नही समझा जा सकता । आज वोट से सत्ता मिलती है, इसलिए लोग इनमे भापण देकर या इनके सामने खुग करने वाली बातें कर के, इन शोपितो के साथ छल करते है, इनके हिमायती बनने का दिखावा करते है, और फिर इनके कन्धो पर पैर रखकर अभीष्ट ऊंचाई पर चढ जाते है और इन्हे अगले चुनावो तक फिर भूल जाने है । इससे तो अछूतो की स्थिति में कोई सुधार हजार वर्षों तक भी सम्भव नहीं है। सरकार ने सविधान मे अछूतपन मिटा दिया है । लेकिन रोटी का चित्र देखने से तो भूखे की भूख नहीं मिटती । जब तक गडा हुआ कांटा न निकल जाए, तब तक ऊपर के लेपलाप से क्या हो सकता है। सरकार को जो आदमी चलाते है, उन्होने समाज कल्याण विभाग जैसे विभाग खोलकर अनन्त काल तक अछूतो के उद्धार का वीडा उठा रखा है। हमेशा रोगी की परिचर्या के सकल्प का एक आदमी को हमेशा रोगी बनाए रखने के और क्या मतलब है | हमे निश्चित रूप से मालूम होना चाहिए कि किस तिथि तक इन अछूतो का कल्याण हो जाएगा, जिसके बाद कि पुनर्वास विभाग (Rchabilitation Deptt ) की तरह समाज कल्याण विभाग की जरूरत नही रहेगी, और कब इसे तोड देना है। २६६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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