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हिन्दू समाज मे जाति-भेद
लिए घर से बहुत दूर जाना सम्भव नही रहा। घरो के आसपास गन्दगी, सडन, और घुटन बढने लगी। आदमी, जिसे कि पहले वाले वन्य जीवन और यायावर जीवन की ताजगी की याद बाकी थी, इससे परेशान हो उठा। महर्षि आत्रेय ने इसी अवस्था के लिए कहा है, कि-"ग्रामवासो हि मूलमशस्तानाम्"। (ग्राम=समूह मे रहना सारी बुराइयो की जड है।)
मानव समाज के अतिरिक्त यदि हम देखे तो हमे ज्ञात होगा कि एक जगह मे घिर कर रहने वाले समूहो की जीवनावधि अधिक नहीं होती । मीठे घोल को शराब मे बदल देने वाला किण्व (खमीर, yeast) उसी घोल मे पैदा होता है, उसकी मिठास से ही आहार लेता है और वश बढाता है, उमी मे मलोत्सर्जन करता है और शर्करा के खत्म होने से पहले ही आत्मसृष्ट मल (alchohal) के विप से घुटकर मर जाता है। आदमी भी अगर आत्मसृष्ट मल की निकासी का उपाय न करता, को वह भी इसी तरह घुटकर मर जाता।
___ इस पृथ्वी पर जीवन का ससार-प्रसार इसीलिए सम्भव हुआ, क्योकि यहाँ स्थावर और जगम सृष्टि एक दूसरे की पूरक है। जगम आदमी के लिए जो मल है-स्थावर वनस्पति का वह खाद्य है। वनस्पति वातावरण मे से, अपने लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड चूसकर, जिस ऑक्सीजन को विसृष्ट करती है, वह आदमी के लिए जीवन की सॉस है। आदमी जल्दी ही यह समझ गया, कि खेतो मे मलोत्सर्जन करने से, न सिर्फ गन्दगी से छुटकारा मिलता है, बल्कि खेतो की पैदावार भी बढ जाती है। लेकिन नयी प्रजा के बढ़ने के साथ-साथ जब ग्राम बड़े होने लगे, तब हर आदमी के लिए स्वय खेत मे जाकर मल क्रिया सम्पन्न करना उतना सम्भव नही रहा । बालक, वृद्ध, रोगी, गर्भिणी या प्रसूता, और सुखानुयायी जनो के लिए इतना आयास दुसह होता। इसके बाद आदमी ने उस व्यवस्था को जन्म दिया, जो कम से कम, भारत मे स्वस्थ समाज के विकास के लिए एक अभिशाप बन कर अवतरित हुई।
सभ्यता के प्रथम चरण मे, शायद सभी देशो मे ऐसी समस्या पैदा हुई होगी। हर समाज ने अपने कुछ व्यक्तियो को मल को ढोकर खेतो मे पहुँचाने के काम में लगाया होगा। सभ्यता के विकास के साथ-साथ यह प्रथा पैदा हुई और मिट गयी होगी। लेकिन हमारे देश मे यह प्रथा मानो चिरस्थायी होकर रहने के लिए ही आयी थी। इसके बाद जैसे सभ्यता का विकास रुक गया। जिसको हमने एक बार मल ढोकर खेत तक पहुंचाने के काम पर लगा दिया, वह अभी तक, पीढी दर पीढी उसी काम मे लगा, हमारे समाज की आदिम असभ्यता की घोपणा कर रहा है। सक्षेप मे हमारे शूद्रो और अछूतो का यही इतिहास है।
भेद पोपक अंग्रेजो ने हमे सुझाया कि आर्य बाहर से आए। उन्होने यहाँ के आदिवासियो को बलात् जीत कर नीच दास्य में लगा दिया। उन्ही दासो के वशज ये शूद्र है और विजेताओ के वंशज सवर्ण । हमने इस स्थापना को, अतीत के विजेता होने का गौरव पाने के लिए मान लिया । पण्डितम्मन्य लोगो ने हर चीज के मूल-स्रोत वेद मे से प्रमाण निकाल कर सबको भ्रम मे डाल दिया। वस्तुत शूद्र और अछूत का उद्गम वही ममाज है, जिससे कि गेप सारे समाज का जन्म हुआ है।
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