SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व इतिवृत्त देवोऽद्विदुर्गमधिरा जिघाय मोह यन्मोहनालयमयं तु वशी प्रविश्य ॥ स्थूलभद्र एक ऊँचे साधक ही नही, बहुत बडे प्रभावशाली ज्ञानी भी थे । पाटलिपुत्र की प्रथम आगम-वाचना मे आचाराग आदि ११ अगो का सकलन इनकी ही अध्यक्षता में हुआ था । दृष्टिवाद के अध्ययन मे भी यही अग्रगामी थे । नेपाल मे जाकर भद्रवाहस्वामी से इन्होने महासमुद्र के समान सुविस्तृत विराट १० पूर्वो का सार्थ अध्ययन किया था और सूत्र रूप मे तो चौदह ही पूर्व अधिगत कर लिए थे। स्थूलभद्र योग-विद्या के भी आचार्य थे। अनुश्रुति है कि एक बार यक्षा आदि उनकी सात वहने, जो साध्वी हो चुकी थी, दर्शनार्थ जीर्णोद्यान में पहुंची। स्थूलभद्र ने चमत्कार दिखाया, विकराल सिंह का रूप धारण करके बैठ गए। बहने डर कर लौट गई। पता लगने पर भद्रबाहु स्वामी ने आगे का अध्ययन यह सूचना देते हुए बद कर दिया कि-"वत्स | अभी तक तुम बहुत ही नगण्य अध्ययन कर पाए हो । यदि तुम इसी को अपने अदर पचा नही सके, सिंह विद्या का चमत्कार दिखाने लगे, तो अग्रिम ज्ञान-राशि को कैसे पचा पाओगे ।" कथासूत्र का उल्लेख है कि स्थूलभद्र का अध्ययन वौद्धिक दुर्बलता के कारण नही, किन्तु इस कारण से अवरुद्ध हो गया, और वह अग्निम चार पूर्व सार्थ अध्ययन नही कर पाए । स्थूलभद्र के पश्चात् पूर्वो का ज्ञान उत्तरोत्तर विलुप्त होता चला गया। उन जैसा मेधावी बहुश्रुत, भविष्य मे और कोई नहीं हुआ। स्थूलभद्र के युग मे, उनकी यक्षा आदि वहनो के द्वारा, चूलिका सूत्रो के रूप मे आगम साहित्य की श्री वृद्धि हुई। चार चूलिकाओ मे से भावना और विमुक्ति आचाराग सूत्र के तथा रति-वाक्या और विविक्त-चर्या दशवकालिक सूत्र के परिशिष्ट-रूप मे जोड दी गई, जो आज भी साधना-जीवन मे प्रकाश किरणें विकीर्ण कर रही है। स्थूलभद्र ने श्रावस्ती के धनदेव श्रेष्ठी को जैन धर्म मे दीक्षित किया । आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती आप के प्रधान श्रमण-शिष्य थे । स्थूलभद्र दीर्घायु थे। आपके युग में मगध मे राज्य-क्रान्ति हुई, नन्द साम्राज्य का उच्छेद और मौर्य साम्राज्य की स्थापना । मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक और कुणाल भी आपके समक्ष थे। कौटिल्य अर्थशास्त्र का निर्माता महामत्री चाणक्य भी आपके दर्शन लाभ से गौरान्वित हुआ है । परिशिष्ट पर्व, मरणसमाधि और सथारपइन्ना आदि मे चाणक्य के दीक्षित होने का, और अन्तिम समय मे बिन्दुसार के असन्तुष्ट सुबन्धु मत्री द्वारा ईर्ष्यावश जलाए जाने पर भी समाधि पूर्वक मरकर देवलोक मे जाने का उल्लेख है। वीर स० २१४ मे होने वाला आषाड भूति शिप्य तीसरे अव्यक्तवादी निन्हव भी स्थूलभद्र के समय मे हुए। __वीर सवत् ११६ मे स्थूलभद्र का जन्म, १४६ मे ३० वर्ष की आयु मे दीक्षा, १६० के लगभग पाटलीपुत्र मे प्रथम आगम वाचना, १६८ के लगभग चूलिकाओ की आगमत्वेन प्रतिष्ठा, १७० मे आचार्य पद और वीर स०२१५ मे वैभारगिरि पर्वत पर १५ दिन का अनशन करके स्वर्गारोहण हुआ।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy