SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाज के विकास में नारी की देन लेती रही। सुल्तान रजिया ने शासनारूढ होकर दिल्ली के सल्तनत बागडोर अपने हाथ में ली । नूरजहाँ ने अपने विलासी पति वादशाह जहाँगीर की राजव्यवस्था बखूबी संभाली। भास्कराचार्य की पत्नी लीलावती ने गणित विज्ञान पर अपनी मुहर लगाई। लाला कवित्री ने योग की कठिन साधना कर आत्म साक्षात्कार किया । राजरानी मीरा ने अपने गीतो मे भक्ति की मन्दाकिनो बहाई | महारानी पद्मिनी ने छद्मवेष धारण कर अलाउद्दीन खिलजी से अपने पति की रक्षा की। ये महिलाएँ सामाजिक उत्तरदायित्व और वैयक्तिक सुख में संतुलन स्थापित कर हमारे लिए एक ऐसी मिसाल छोड गई है, जो आज भी स्तुत्य है । अराजकता के युग मे नारी को चार दीवारी में बन्द रहना पडा । उसके समानता के अधिकार छिन गए। उसकी पढाई लिखाई बन्द हो गई और पर्दे मे सूर्य भी उसको नही देख सकता था । मनुष्य की निगाह में भी वह हीन बन गई। उसका अतीत का गौरव प्राय समाप्त हो गया था। फिर भी स्वतन्त्रता के प्रथम सग्राम मे रानी लक्ष्मीबाई के रूप मे उसकी देन लासानी है । माक्षात् भवानी वनकर उसने रणक्षेत्र मे युद्ध का सञ्चालन किया। उसके देवाङ्गनोपम व्यक्तित्व से लाखो प्राणी प्रभावित हुए । उसकी सामरिक प्रतिभा अद्भुत थी । यदि उसके समकालीन नेता उसकी समर योजना के अनुसार काम करते और उसके हाथो मे नेतृत्व सौप देते, तो आज भारत का इतिहास दूसरा ही होता । लक्ष्मीवाई विश्व के प्रख्यात वीरो की मौलमणि है और आज तक ऐसी नारी न हुई और न होगी। जीनतमहल ने भी उस रण मे आजादी के सिपाहियो का कुशल नेतृत्व किया। महारानी अहिल्या बाई ने भी योगिनी की तरह निस्वार्थ भाव से राज किया और भारत भर में अपने दान और वदान्य के चिन्ह छोड़ गई । गाधी युग मे भारतीय नारी की देन अविस्मरणीय है । महात्मा गाधी की रणभेरी सुनकर वह तपस्विनी अपनी सास्कृतिक परम्परा को ध्यान मे रखकर पर्दे को चीरकर बाहर आ गई और स्वतन्त्रता के सग्राम मे उसने अपना पूर्ण योगदान किया । उसने लाठियो और गोलियो के आघात अपने कोमल अङ्गो पर सहे और कारागार को कृष्ण मन्दिर समझ उसकी यात्रा करने मे भी वह पीछे नही रही । गाधी 'युग की नारियो मे दो ने विश्वस्याति प्राप्त की- एक स्वर्गीय सरोजनी नायडू और दूसरी श्रीमती पण्डित | देश विभाजन से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई, किन्तु इसका मूल्य भी नारी ने अपने सतीत्व की गुण्डो के बलात्कार की बलिवेदी पर चढा कर की। नारी की समाज को मुख्य देन प्रेरणा है। वह मनुष्य की चेतना है, वुद्धि है। वही क्रान्ति की afor asकाती है और वही शाति के शीतल जल से उसे शान्त करती है। स्त्री ही अपनी दया, माया, ममता और प्रेम से जीवन को सरस और अमृत तुल्य बनाती है। वह नर की खानि है, नृसिंह की जननी है और आदि शक्ति की भूतल पर प्रतीक है। पुरुष उसके साथ सम्पन्न होकर ही पूर्णता प्राप्त करता है । कन्यका, प्रेयसी और माता के रूप मे वह वन्दनीय है और सदा रहेगी। अपने बुद्धिवल और चातुर्य से उसने समाज को दृढ और सुसगठित बनाया है और उसके उपकार अनगिनित है । वह भारत की विकसित परम्परा पर ही अनन्त काल तक चलती रहे, यही मेरी कामना है। नारी आदर्शवाद और यथार्थवाद, युक्तवाद और परम्परा का विचित्र मिश्रण है। युगान्तकारी परिवर्तनो मे भी उसने हमारी २५६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy