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समाज के विकास में नारी की देन
दिनेश नदिनी डालमिया
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समाज- शकट के पुरुष और नारी दो चक्र है, और यान के सन्तुलन के लिए दोनो की जिम्मेदारी समान है । जब नरात और न दिन, तव शिव भी शक्ति के अभाव मे शव था । माया से सम्पन्न होने पर उसमे स्फुरण हुआ । ब्रह्माण्डो को रचना हुई और उसने शिवत्व प्राप्त किया ।
बाइबिल की कथा के अनुसार आदम नदन वन का प्रथम पुरुप था । अपने अकेलेपन से ऊब कर जब उसने एक सहचरी की कल्पना को तो हवा उसके पश्चिम से प्रकट हुई । वहाँ एक वर्जित वृक्ष था, जिसके फलो को खाने की मनाई थी। स्त्री अपने कुतूहल को न रोक सकी। उसने अपने पति को उस तरु के फल को चखने को उकसाया । अनाज्ञाकारिता के कारण वे स्वर्ग मे च्युत हो गए, और मैथुनी सृष्टि का आरम्भ हुआ । इस आख्यायिका को अविश्वसनीय माने, तो भी इसके तथ्य को अस्वीकार नही किया जा सकता । जिज्ञासा, जान की जननी है और इम कहानी के अतर्गत यही सत्य है, कि अच्छे और बुरे को जानने की प्रेरणा मनुष्य को स्त्री से ही प्राप्त हुई ।
प्रागैतिहासिक काल मे कोई सुघटित ममाज नही था । बर्वर मनुष्य गुफाओ और जगलो मे रहता था । आखेट द्वारा ही वह कुटुम्ब का और अपना निर्वाह करता था । स्त्री तीर और धनुप लेकर उसके माथ जाती और शिकार मे उसका साथ देती। घर को स्वच्छ रखना और सन्तान का लालनपालन करना भी उसका ही कर्तव्य था । अग्नि के आविष्कार के बाद भी वह खेतो और खलिहानो के कामो मे अपने सगी का हाथ बटाती और गृह कार्यों का संचालन करती । फिर भी वर्बर युग मे स्त्री मनुष्य की स्थावर और जगम सम्पत्ति की तरह उसकी निजी जायदाद थी। दस्यु और लुटेरे आते और उसको उसी तरह लूट ले जाते, जैसे उसके स्वामी के धन को । कई बार उसका रूप ही मार-काट और
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