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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
इतना सब होने पर भी जैन जनता युगो युगो मे मगध से अपना सम्बन्ध बनाए रही। जैन कवियों ने उसे अपनी पुण्य भूमि को तीर्थ रूप मे सदा स्मरण किया है । इस बात का प्रकाश हमे नालन्दा बड़गांव के जैनमन्दिर से पालवशी राजा राज्यपाल के समय (१० वी शताब्दी का पूर्वार्ष) के एक लेख से मिलता है। लेख मे मनोरथ का पुत्र वणिक् श्री वैद्यनाथ अपनी तीर्थ-वन्दना का उल्लेख करता है।
आज मगध के प्रमुख स्थानो मे जैन जनता वाणिज्य के लिए बसी है। मगध के जैन सास्कृतिक केन्द्र उनकी सहायता की राह देख रहे है। चारो ओर विकास की योजनाएं लागू हो रही है। क्या वह मगध जिसने जैन संस्कृति को जन्मक्षण से पाला पोसा है, आज फिर उसके विकास के लिए पात्र नही हो सकता? तीर्थ यात्रा के नाम पर जैन जनता हजारो रुपये इस भूमि पर आकर खर्च करती है, पर जैन-सस्कृति के प्रसार सबधी उपादानो से, यह प्रान्त आज भी वचित है, जो बडे खेद की बात है।
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